बुढिया इजरगिल . मैंने ये कहानियों श्रखरमान के नजदीक घेसरनिया के समुद्र तट पर सुनी थी । एक शाम को अंगूर तोरने का काम समाप्त कर, मैं मोल्डेथिया के निवासियों जिनके साथ मैं यही काम कर रहा था - के साथ समुद्र तट पर गया में बुढ़िया इज़रगिल के साथ पीछे रह गया जो एक धनी द्वाक्षा- लता के नीचे जमीन पर माराम से लटो हुई सन्ध्या के धुधलेके में समुद्र की घोर जाते हुए मनुष्यों की परप्ट रेखात्रों को देख रहो यो । वे लोग गाते और हसी मजाक करते सट को और चले जारहे थे । मनुष्य कोटी फनीजें और चौड़ी मुहरी की पतलूने पहने हुए थे । उनके चेहरे तांबे के रंग के मुघनी और कालो तथा बाल लम्बे थे जो लहराले गए कन्धों से नीचे लटक रहे थे । घारतें और लड़कियां प्रगत शीर टरफुल दिवाई पर रही थीं । उनके मेन गहरे फाले धे, रोशनी और हवा से उनके चेहरे सांवो पर गए थे । उनके रेशमी जैसे मुलायम बाल पोट के ऊपर लहरा रहे थे । मुहारनी हल्को गर्न हया उन बालों को बहरा कर टनमें बंधे हुए सुन्दर भानूपरों की छोटी छोटी घटियों को मधुर पनि से बना रही थी । हवा एक नदी की विस्तृत धारा के समान मन्थर गति से याद रहो यो । यदा कदा फिमो भरोध में टफराकर भयंकर हो रही थी और उन औरतों के वालों को मोहे के पाली की नोति पन्धों पर इधर उधर पिपरा देगी शी । अपने इस अनुन रूपमें उन नियों का रूप ऐसा हो जाता था मानो ये रिमी परीलोक को गारिया हो । जैसे २ थे वोग इन में दूर हो गए, बिनी हुई रा और
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