पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दुनिया हारगिल १६१ ऐसा लगता था मानो यह घास के उस अनन्त विस्तार से उत्पन्न हुआ है जिसमें सदियों से श्रादमी का रक्त और मांस सूसता रहा है और सम्भवतः इसी कारण से यह मैदान इतना उपजाऊ बन गया है । जैसे हो चाँद निकला, उसने हमारे ऊपर द्राक्षालता की रुपहली घाया फैला दी । मैं और वह युद्ध ही स्त्री दोनों छाया और चन्द्रिका के उस सुन्दर जाल के नीचे रुक गये ; हमारी बांयी पोर श्राफाश में विचरण करते हुए बादलों ___ की छाया मैदान पर पड़ रही थी । बादल चाँद की रुपहली किरणों में ये हुए अधिक सुन्दर और पारदर्शी दिसाई पढ़ रहे थे । __ " देखो , वह लारा है । " मैंने उस ओर देखा जिधर उस औरत ने अपने काँपते हुए हाय और टेढ़ी उँगलियों से इशारा किया था और मैंने अनेक छायायें उधर उनी हुई देखीं । परन्तु उनमें से एक अधिक गहरी और मोटी थी । यह दूसरी छायायों मे अधिक तेज और नीची होकर उद रही थी । यह एक बड़े बादल की छाया थी जो और बादलों से बहुत नीचे, धरती के पास , तेजी से उदा __ चला जा रहा था । " मुझे कोई नहीं दिखाई देता , " मैंने कहा । "तुम्हारी पास मुझ से भी कमजोर हैं , एक युनिया की योगों से भी । देशो, उधर यह एक काली सी यस्तु जो मैदान के ऊपर भागी चली जा रही है । " मैंने चार बार उधर देवा परन्तु पायात्रों के अतिरिक कुछ भी न देख सका । "यह तो एक दाया है । तुम उसे लारा क्यों कहती हो ? " " क्योंकि यह यही है । अब उसका अस्तिग्य छाया में अधिक उद __ भी नहीं रहा । इसमें कोई प्राय नहीं । या हजारों वर्ष वीरित रहा । भूग की किरणों ने उसके शरीर के रम , मांस योर इष्ट्रियों को बिल्कुल सुना दिया चौर हग उन्हें धूल की तरह उदा पर ले गई । तुम जानते होतिरअभिमानी भ्यरियों को पैसा दान देना है "