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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१६२

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१६२ बुढ़िया इजरगिल - - - - - - - - - - - - - - - - - " मुझे सुनायो, यह कैसे हुआ ।" मैंने उन मैदानों में प्रचलित अनेक अद्भुत कहानियों में से एक कहानी सुनने की आशा से उस वृद्धा से प्रार्थना की । और उसने मुझे यह कहानी सुनाई । " यह घटना हजारों साल पहले घटो थी । समुद्र के उस पार, बहुत दूर , जहाँ से सूर्य उदय होता है , एक देश है, जिसमें एक बड़ी नदी यहती है । उस देश में उत्पन्न होने वाले बृक्ष और घास की पत्तियाँ इतनी वढ़ी होती हैं कि उनमें से एक के नीचे बैठ कर वहाँ चमकने वाले प्रखर सूर्य की गर्मी से आदमी अपने को बचा सकता है । " __ " उस देश की जमीन इतनी अच्छी है ? " " उस देश में मनुष्यों की एक शक्तिशाली जाति निवास करती थी । वे पशु पालते , जंगली जानवरों का शिकार करते, और फिर गोश्त की दावत खाते तथा लड़कियों के साथ मिलकर नाचते और गाते । " एक दिन, जव दावत हो रही थी , एक लडकी को , जिसके बाल रात्रि की तरह काले और चिकने थे, एक गरुड़ श्राकाश से झपटा और , उढा ले गया । उपस्थित मनुष्यों ने उसे बचाने के लिए ऊपर की ओर वीर छोडे । परन्तु वे छोटे छोटे तीर गरड़ तक न पहुंच सके और असफल होकर पृथ्वी पर श्रा गिरे । तब उस जाति के प्रादमी उस लड़की को ह दने निकले परन्तु उनका सारा प्रयत्न व्यर्थ रहा । वे उसे न दढ़ सके । फिर समय बीतने पर जैसे सब चीजें भुला दी जाती है , वैसे ही वे सभी उस लडकी को भूल गए । " बुड़िया ने गहरी साँस ली और चुप हो गई । उसकी उस कर्कर थावाज में जैसे बीते हुए युगों की वे सब शिकायत , धु धली स्मृतिया , रूप में साकार हो उठी । सागर चुपचाप, उन पुरानी कहानियों में से. ज सम्भवत उसी के किनारे पर गढ़ी गई थीं , एक को पुन सुन रहा था । __ " वोस माल बाद वह लड़की एक दिन स्वय लौट आई - थकी और मुरझाई हुई सो । उपके साथ एक सुन्दर और शक्तिशाली युवक था , वैसा