पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१६५

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बुढ़िया इज़रगिल पड़ता जा रहा था । मैदान में चारों ओर एक गहन नीलिमा का साम्राज्य छा गया था .. . ! ___ " और तब वे लोग, उस युवक को उसके उस अपराध के लिए उचित ड देने की व्यवस्था करने के लिए एकत्र हुए । कुछ ने सुझाव रसा कि घोटों से बांधकर उसके टुकडे टुकड़े कर दिए जांय परन्तु यह ढूंढ उदार और कम कष्टदायक था । दूसरो ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति उसके एक एक तीर मारे परन्तु यह भी नहीं माना गया । कुछ बोले कि उसे खम्भे से बांधकर भाग लगा दी जाय परन्तु इस प्रस्ताव का विरोध इसलिए हुया क्योकि उस भाग से उठे हुए धुए के कारण वे उम्मकी यातना को स्पष्ट नहीं दंग सकेंगे । इसके बाद अनेक दूसरे प्रस्ताव उपस्थित किए गए परन्तु उनमे से एक भी पूर्णरूपेण सन्तोपजनक नहीं माना गया । जब ये विवाद कर रहे थे , उस युवक को माँ उनके सामने घुटनों के बल बैठी हुई मौन प्रार्थना कर रही थी । वह अपने पुत्र के लिए दया को भिशा मांगने में असमर्थ हां रही थी क्योंकि उसे इसके लिए उपयुक्त गट नहीं मिल रहे थे । घे घण्टों तक यहम करते रहे, अन्त में गम्भीर मनन के उपरान्त एक बुद्धिमान व्यक्ति बोला " हमें उसने यह पूछना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया । " उन्होंने उससे पूछा और उसने उत्तर दिया "मेरे बन्धन खोल दो । मैं इस दशा में कुछ भी नहीं बताऊँगा । " सौर जब लोगों ने उसके बन्धन पोल दिए तो टमने उनसे ऐसे पूरा मानो यह अपने गुलामों से बात कर रहा हो " तुम लोग पया चाहते हो ? " " नुमने नुन लिया है ... " उम बुद्धिमान व्यनि ने उत्तर दिया । " मैं अपने व्यवहार की सफाई तुमको क्यों हूँ " " मलिए कि हमें जान हो जाय । ए घमन्त्री युवक ! मुन , तुम जान से मार दिया जाएगा । हमें पताश्री मुमने ऐरा क्यों किया । म लोग जीवित रहेंगे और हमारे लिए यह लाभदायक होगा कि हम मिलना जानते हैं उससे मौर अधिक जान स । "