१६१ धुढ़िया इजरगिल लिया । परन्तु वह लड़की उसका अपमान करने वाले सरदारों में से एक की बेटी थी । इसीलिए , यद्यपि वह बहुत सुन्दर था , तो भी उसी लड़की ने झटका देकर उसे एक ओर हटा दिया क्योंकि उसे अपने पिता का भय था । वह वहाँ से जाने के लिए मुठी ही थी कि उस युवक ने उस पर श्राघात किया और जब वह जमीन पर गिर पड़ी तो उसकी छाती पर खड़ा हो गयो जिससे उसके मुख से खून का फब्बारा बह निकला । उस लड़की की दम घुटो, वह साप की तरह ऐ ठी और मर गई । " इस दृश्य को देखने वाले सभी भय से जड़ बने खडे रह गए । यह पहला अवसर था जब उनकी आँखों के सामने एक नारी की इस प्रकार हत्या की गई थी । वे बहुत देर तक निस्तब्ध खड़े उस मरी हुई लढकी की ओर देखते रहे जो खुले नेत्र और रक्त से सना मुंह लिए धरती पर पड़ी थी । और फिर उन्होंने उस युवक की ओर देखा जो उस लडकी की बगल में गर्व से मस्तक उन्नत किए उन __ लोगों का सामना करने की अभिलाषा से खड़ा था । उसका सिर दंढ के भय से भयभीत होकर झुका नहीं था । जब उन लोगों की यह स्तब्धता दूर हुई तो उन्होंने उस युवक को पकड़ कर बांध लिया और उसी बंधी दशा में उसे वहीं जमीन पर डाल दिया । क्योंकि उन्होंने सोचा कि इस निरस्त्र को मारना बढ़ा आसान है परन्तु उसको इस प्रकार की मौत से उनकी प्रतिहिंसा की श्राग न वुझ सकेगी । ___ “ रात्रि गहरी हो चली । चारों ओर धीमा धीमा भयकर शब्द गूंजने लगा । गिलहरियों की शोकपूर्ण सीटी की सी ध्वनि मैदान में चारों ओर फैल गई । द्राक्षालता में छिपे हुए झींगरी की झनकार से सम्पूर्ण वातावरण , व्याप्त हो उठा । वृक्षों की पत्तियों में से निकलती हुई घायु , सनसनाहट की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी मानो वे पत्तिया फुसफुमाहट की सी थावाज में आपस में दुख सुस की बात कर रही हों । पूर्णिमा का चाँद जो पहले खून की तरह लाल था , अव पीला पड़ चुका था और जैसे जैसे वह आकाग में ऊपर उठता जाता था उसका रंग और भी अधिक पीला
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