बुदिया इज़रगिल १६७ इसी समय एक अद्भुत घटना घटी । श्राकाश में भयंकर गर्जन हुआ यद्यपि वहाँ बादलों का नाम निशान भी नहीं था । इस गर्जना द्वारा देवता थों ने दंड की इस विधि को स्वीकर कर लिया था । सबने सिर झुकाए और विखर गए । मगर वह युवक, जिसको अब लारा का नाम दिया गया था , जिसका अर्थ था , जाति से निकला हुआ , उन श्रादमियों पर , जो उसे छोड़कर जा रहे थे, वही जोर से हंसा । जब वद्द अकेला रह गया, अपने पिता की तरह पूर्ण स्वतंत्र तो पुनः एकबार जोर से हमा । परन्तु उसका पिता मानव जाति का नहीं था जय कि वह स्वयं मानव था । इसलिए उसने पक्षी के समान स्वतंत्र जीवन विताना प्रारम्भ कर दिया । यह उन लोगो के ढेरी में घुस जाता और उनके जानवरों, लड़कियों और अपनी मनपसन्द चीजों को चुपचाप चुरा ले जाता । वे टस पर तौर परमाते. परन्तु उसका शरीर उस भयानक दण्ड के अप्रया प्रभार से रहित या - उसकी मृ यु नहीं हो सकती थी । वह अमर था । वह बड़ा फुर्तीला , लालची , ताकतवर और निर्टयो था । परन्तु वह यादमियों के सामने कभी नहीं पड़ता था । वह हमेशा कुछ दूरी पर ही दिखाई देता । और इस प्रकार वह टम जाति के गाँवो में बहुत समय वक , संक्दो चपी तक चक्कर काटता रहा । परन्तु एक दिन बद श्रावादी के बहुत पास भा गया और जय मनुष्य उसे पक्दने दौड़े तो वह भागा नहीं और न टसने अपनी रसा करने का ही प्रयत्न किया । उनमें से एक धादमी समझ गया और उसने चिरवार दुमरों को चेतावनी दी " से पदना मन । वह मरना चाहता है । " ये सय एक्दम रक गए । वे नहीं चाहते थे कि जिस व्यनि, ने इतना भयङ्कर घपराध दिया है, म यु से उसकी यंत्रणा कम हो जाय । ये उसे मारना नहीं चाहते थे । ये रकला दमका मजाक थाने लगे । याद महा मा टनकी य टीर बानों को मुनगा राहा और पना सामा प्रसोस होता था मानो यह धरने हदय को रोजने का प्रयास कर रहा हो । भयानक यह झपटा चौर एक बहाल रवाकर टन लोगों को मारने दौसा ।
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