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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१६८

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१६८ बुढ़िया इज़रगिल परन्तु वे उसके वारों को बचाते रहे और लौटकर उस पर किसी ने भी चोट नहीं की । अन्त में श्रान्त होकर निराशा की एक भयकर चोख उसके गले से निकली और वह जमीन पर गिर पड़ा । वे दूर खड़े होकर उसे देखते रहे । वह थोड़ा सा उठा और उस भाग दौड़ में गिरे हुए एक खंजर को उठाफर अपने सीने में घोंपने का प्रयत्ल किया परन्तु वह खंजर उसके सीने से इस प्रकार टकराया जैसे पत्यर पर मारा गया हो । वह पुनः जमीन पर गिर पड़ा और अपना सिर पत्थरों से फोड़ने लगा । उन चोटों से जमीन पर गरढे बन गए परन्तु उसके कहीं स्वरोंच तक न पा सकी । "वह नहीं मर सकता । " वे लोग प्रसन्नता से चीखे । " वे उसे छोड़कर चले गए । वह ऊपर को मुह किए जमीन पर पड़ा रहा । उसने चीलों को , काले धब्बे की तरह , दूर श्रासमान में महराते देना और उसकी आँखों में क्रूरता का विष लहरा उठा जिससे वह पूरे संसार को खाक बना सकता था । तब से वह मृत्यु की प्रतीक्षा करता हुआ नितांत एकाकी धूमा करता है । और इस प्रकार वह निरन्तर, चारों थोर घूमता फिरता है . . . । तुमने देखा ? वह बिलकुन छाया की तरह है और वह अनन्त काल तक ऐसा ही रहेगा । वह न तो मनुष्यों की बोली को समझ सकता है और न उसकी समझ में इनके कार्य ही पाते हैं । वह कुछ भी नहीं समझ पाता । वह घूमने के अतिरिक और कुछ नहीं करता जैसे कोई चीज हूँदता फिर रहा हो । न वह जीवन का सुख जानता है और न मौत हो उस पर रहम करती है । मानवों के संसार में उसे कोई स्यान नहीं .. ." । इस प्रकार घमण्डी व्यक्ति को अपने घमएड के लिए सजा दी गई थी ! " उस बुदिया ने गहरी सांस ली और चुप होगई । उसका सीने पर मुका हुधा सिर कई वार एक अनोखे तरीके से इधर उधर हिला । मैंने उसकी ओर देखा । मुझे ऐसा लगा कि उस पर नींद का असर हो रहा है और किमी अज्ञात कारण से मेरा हृदय उसके लिए वेदना से भर उठा । उसने पत्नी कहानी को भस्यन्त सुन्दर और चेतावनी देने वाले ढग से समाप्त