पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८

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"और तुम क्या यह सोचते हो कि में तुम्हारी मो?" मावश ने खामोशी से पूछा भौर जवाब का इन्तजार न कर मारो बोली-"क्योंकि तुम्हारी पादत अपनी स्त्री को विना ही किसी कारण के पीटने की पड़ी हुई है। तुम सोचते हो कि तुम मेरे साय भी वही करोगे, क्यों ? लेकिन तुम भूल रहे हो। मैं अपनी मालकिन खुद हूँ और मुझे किसी का भी डर नहीं। मगर तुम-तुम अपने लड़के से डरते हो ! आज सुयह जिस तरह तुम उसके सामने नाच रहे थे वह अत्यन्व अपमानजनक था। और फिर भी तुम मुझे धमकाने को जुर्रत कर रहे हो" उसने नफरत से अपना सिर हिलाया और खामोश हो गई । उसके शान्त, घृणा भरे शब्दों ने वासिली के क्रोध को शान्त कर दिया । उसने मालवा को इतने सुन्दर रूप में पहले कभी नहीं देखा था। "तुम जहन्नुम में जाओ..." वह घुर्राया । वह उससे नाराज या परन्तु उसकी सारीफ करने से अपने को न रोक सका । "और मैं तुम्हें दूसरी यात यताऊँगी!" मालवा फट पड़ी "तुमने सोझका से डींग हाँको यो कि सुम मेरे लिये रोटी की तरह हो । तुम यह नहीं हो जिसे मैं देखने पाती है, लेकिन वह यह जगह है" यह कहते हुए उसने अपने हाथ से चारों ओर इशारा किया। "शायद में इस जगह को इसलिए पसन्द करती हूँ कि यह निर्जन हैकेवल समुद्र धौर श्राफाश-परेशान करने वाले पुषित मनुष्य यहीं नहीं हैं। धौर यह पात कि तुम यहाँ रहते हो, इससे कोई धन्तर नहीं पड़ता "यह तो यहाँ पाने के लिये मुझे कीमत भी चुकानी पपती है। अगर सर्योमका या रहता होता तो मैं उसके पास भी मातो । अगर तुम्हारा येटा यहाँ रहेगा तो मैं उसके पास भी धाऊंगी...यह अच्छा होगा कि यहाँ कोई म हो...मैं तुम सप से जप ठठो ह...पनी खूबसूरती से में हमेशा किसी न किसी प्रादमी को पालूगी जब मुझे किसी की जरूरत होगी और में उस व्यक्ति को पा सकती है जिसे मैं चाहूंगी।" "यह यात " अचानक मालवा का गला पकरते हुए पासिलो गरजा "तुम्हारे ऐसे विचार है ?" उसने उसे मामोरा परन्तु यह शान्त