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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१७

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मालवा "मैं सोच रही हूँ," मालवा ने जबाव दिया । "किसके बारे में . "मोह, किसी खास चीज के बारे में नहीं," भौहें सिकोड़ते हुए मालवा ने जवाब दिया । कुछ देर चुप रह कर उसने आगे कहा, "तुम्हारा येटा सुन्दर लड़का है।" "इससे तुम्हें क्या करना है ?" वासिली ने कुढ़ कर पूछा । "बहुत कुछ !" "सावधान रहना !" उसकी तरफ क्रोध और सन्देह के साथ देखते हुए वासिली ने कहा । "बेवकूफ मत वनो ! मैं एक खामोश तबियत का श्रादमी हूँ परन्तु जब मुझे गुस्सा आता है तो मैं राक्षस घन जाता हूँ । इसलिए मुझे परेशान मत करो । धर्ना इसके लिए तुम्हें पछताना पड़ेगा!" । हायों की मुट्ठियाँ बांधते हुए उसने दोत भीचकर फिर कहा : "जबसे श्राज सुवह तुम यहां आई हो तभी से तुम्हारे मन में कुछ करने की भावना छिपी हुई है..." में अभी तक नहीं समझ सका कि सम्हारे मन में क्या है ....... लेकिन सावधान रहना, जब मुझे मालूम हो जायगा वो तुम्हारी मुसीबत आ जायगी! और तुम्हारी वह मुस्कराहट. और दसरी सभी हरकतें "मैं तुम जैसों को ठीक करना जानता है, इस बात से निश्चित रहना।" "मुझे डराने की कोशिश मत करो, वास्या," वासिली की ओर विना देखे हुए मालवा लापरवाही से बोली। "तो तुम कोई घदमाशी करने की बात मत सोचो......" "और तुम मुझे धमकानो मत"..." "मैं मारवे मारते तुम्हारी मुसी उड़ा दूंगा, अगर तुमने यारों से प्रांखें लड़ाई तो" धासिली भड़क कर बोला। "क्या ? तुम मुझे मारोगे," मालवा ने वासिली की ओर मुड़कर असके उत्तेचित चेहरे को देखते हुए कहा । .. "तुम अपने को क्या समझती हो-एक रानी ? हाँ, मैं तुम्हें पीढ़ेगा।"