बुदिया इज़रगिल श्रेष्ठ है क्योंकि उसके नेत्रों से अपार शक्ति और जीवन को श्राग निकल रही थी । " हमारा पथ प्रदर्शन करो " - उन लोगो ने कहा । " और वह उनका पथ प्रदर्शक और मुखिया बना । बुढ़िया चुप हो गई और मैदान की ओर देखने लगी जहाँ अन्धकार और गहरा होता जा रहा था । दूर पर दान्को के जलते हुए हृदय से रह रह कर चिनगारियाँ निकल रही थी - नीले फूलो की तरह, जो क्षण भर के लिए खिल कर मुरझा जाते हैं । " और दान्को उन्हें भागे ले चला । एकमत होकर वे सब उसके पीछे चले क्योंकि उनका दान्को में पूर्ण विश्वास था । यह बड़ा वीहरू मार्ग था । चारों पोर अन्धकार दाया हुश्रा था । कदम कदम पर दलदल अपना लालची , सड़ा हुधा, दुर्गन्ध पूर्ण मुंह खोलकर श्रादमियों को निगल जाता । पेड पथर की तरह उनका रास्ता रोक लेते, उनकी शाम्बाएं श्रापस मे गुथी हुई थीं और जड़े सांपों की तरह चारों योर फैली हुई था । कदम दम पर इन लोगों को अपना खून और पसीना बहाना पड़ रहा था । वे बहुन समय तक भागे बढ़ने का प्रयत्न करते रहे । जैसे जैसे वे श्रागे बढ़ते गए जहाज और धना होता गया । उनकी शक्ति समाप्त हो चली थी । य वे दान्को के खिलाफ घड्यहाने लगे थे और कहते थे कि वह अभी लड़का और अनुभवहीन है और नहीं जानता कि उन्हें कहाँ ले जारहा है । परन्तु वह सब के. गे प्रस और शांत मुद्रा में मागे बढ़ता गया । " एक दिन उस जंगल में एक भयंकर तूफान माया । वृक्ष डरावने रूप से सांय सांय करने लगे । जंगल में इतना धना अंधकार दा गया कि मानो जब से यह जंगल उत्पन्न हुया था तब से लेकर अब तक की सम्पूर्ण रात श्रान इस एक स्थान पर इकट्ठी हो गई हों । ये लोग तुफान की उस भयकर
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