पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८७

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बुदिया इजरगिल तेजी में विशाल वृक्षों से युद्ध करते हुए आगे बढ़ते गए । वे लोग आगे बढ़ते और वे प्राचोन , विशाल और मजबूत वृक्ष क्रोध से चरमरा उठते । उनकी चोटियों पर विजली चमकती जिससे वे प्रकाशित हो उठती । बिजली की यह चमक क्षणिक होती । वे लोग भयभीत हो उठे थे । बिजली की चमक में वे वृक्ष ऐसे प्रतीत होते थे मानो जीवित हो , और लोगों को घेरने के लिए अपनी विशाल भुजाऐ जाल की तरह फैला रहे हों जिससे कि वे वहीं रुक जाय और अधकार की कैद से भाग न सकें । उन शाखाओं के अन्धकार में से कोई भयानक और मृत्यु जैसी शीतल वस्तु उनकी ओर घूम रही थी । यह एक भयानक मार्ग था और वे मनुष्य इससे थककर हिम्मत हार बेठे । परन्तु अपनी इस निर्वलता को प्रकट करने में उन्हें लज्जा का अनुभव होता इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा दान्को पर निकालना प्रारम्भ किया जो उनके श्रागे धागे चोरता पूर्वक चला जा रहा था । उन्होंने बदबढ़ाना प्रारम्भ किया कि वह उन्हें ठीक तरह से रास्ता दिखाना नहीं जानता । तुम्हारा इस विषय में क्या रयान है ? " वे जगल के उस भयानक वातावरण में रुक गए और थकावट और गुस्से से भरकर दान्को को बुरा भला कहने लगे • "कमीने श्रादमी , " उन्होंने कहा , तुम्ही " हमारी इस मुसीबत की जद हो । तुमने हमें रास्ता दिखाने का प्रय न किया और भटका दिया और अब तुम्हें इसके लिए मरना पड़ेगा । " " तुम लोगों ने कहा- हमें रास्ता दिखानी और मैंने रास्ता दिखाया , " दाको ने गर्वपूर्ण मुहा से उनकी ओर देख कर कहा, "मुझ में नेतृत्व करने को शक्ति है इसी कारण मैंने तुम्हारा नेतृत्व किया । लेकिन तुम लोग ? तुम लोगों ने अपनी मदद के लिए क्या किया ? तुम लोग देवल मेरे पीछे चलते रहे । तुम लोग एक दम्बी यात्रा के लिए श्रापश्यक अपनी शक्ति को कायम सपने में भी असमर्थ रहे । तुम लोग केवल चलते रहे, भेक्षा के मुद को तरन योग यन्द किये ? " " परन्तु इन शब्दों ने उन लोगों को और अधिक उत्तेजित कर दिया । "