पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१९५

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भावारा प्रेमी शाश्का ने अपनी सिकुड़ी हुई टोपी सिर से उतारी और सम्मानपूर्वक मुककर उस लड़की से वोला . " भगवान तुम्हें ऐसे सुन्दर दिन बार बार दिखाए, कुमारी " उस लड़की का सुन्दर कोमल गोल चेहरा पहले तो एक मूदु मुस्कान से खिल उठा परन्तु उसने तुरन्त ही अपनी पतली भौंहों में गांठ देकर उसे घूरते हुए क्रोध और भयमिश्रित स्वर में कहा " लेकिन मैं तो तुम्हें नहीं जानती । " " मोह ! यह कोई बात नहीं है, " शाश्का ने प्रसन्न होकर उत्तर दिया " मेरे साथ हमेशा ऐसा ही होता है । पहले तो वे मुझे नहीं पहचानती लेकिन जब पहचान लेती हैं तो मुझे प्रेम करने लगती हैं । " " अगर तुम बदतमीजी करना चाहते हो . " लड़की ने चारों श्रोर देखते हुए कहा । सड़क विलकुल सूनी यी , केवल बहुत दूर मोड़ पर गोभियों से भरी हुई एक गाड़ी चली जा रही थी । ___ "मैं भेड़ की तरह सोधा हूँ, " शाश्का ने उस लड़की की बगल में . चलते और उसके चेहरे की ओर देखते हुए कहा - "मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि प्राज सुम्हारा जन्मदिन है... " " कृपा करके मुझे अकेला छोड़ दो । " लड़फी ने दम तेज कर दिए और जान बूझ कर किनारे पर लगी हुई ईटों पर अपनी एड़ी को खटखट करने लगी । शाश्का रुक गया और चड़यड़ाया " अच्छा , ठीक है । मैं पीछे रह गया । क्या वह घमण्डिन नहीं है ? फेसी दयनीय स्थिति है कि मेरे पास ऐसी पोशाक ही नहीं है जिसे पहन कर मैं यह सेल खेल सकूँ । घगर में कोई दूसरा अच्छा मा सूट पहने होता तो वह मेरी शोर श्रापित होती । सैर, तुम कोई चिन्ता मत करो । " " तुम कैसे जानते हो कि आज उसका जन्मदिन है " " मैं कैसे जानता हूँ ? वह अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहन कर