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मालवा पोटे ? परन्तु उसका गुस्सा शान्त हो चुका था और वह उसके ऊपर दुयारा अपना हाथ उठाने की बात नहीं सोच सका । "इसका मतलब है कि तुम मुझे प्यार करते हो; क्यों करते हो न?" मालवा फिर फुसफुसाई और इस फुसफुसाहट ने उसके शरीर में एक सन- सनी की लहर दौड़ा दी। "अच्छा ठीक है" यह कॉपा, "अभी जितनी मार पड़नी चाहिए थी उसकी साधी भी नहीं पड़ी है।" "मैं सोच रही थी कि अब तुम मुझे प्यार नहीं करते" मैंने अपने श्राप सोचाः अब उसका बेटा आगया है, वह मुझे भगा देगा।" वह अजीव तरह से हंस पड़ी। वह बहुत तेज हंसी थी। "तुम बेवकूफ हो !" पासिली भी हंसते हुए बोला-"मेरा बेटा कौन होता है ? वह मुझ से यह नहीं कह सकता कि मुझे क्या करना चाहिए !" उसे अपने ऊपर लज्जा श्राई और उसके लिए दुःख हुधा परन्तु यह याद करके कि उसने सभी क्या कहा था, कठोर आवाज में योला । "मेरे येटे का इससे कोई सम्बन्ध नहीं। अगर मैं तुम्हें मारता है तो यह तुम्हारा अपना कसूर है। तुम्हें मुझको इस सरह परेशान नहीं करना चाहिए था।" "परन्तु मैंने किसी खास वजह से ऐसा किया घा-मैं तुम्हें परखना चाहती थी," उसके कन्धे से अपना गाल रगरते हुए वह बोली। "मुझे परसना चाहती थी ! किस लिए ? अच्छा, अब जान गई ।' "कोई यात नहीं !" माघी घासें बन्द करते हुए मालवा ने विश्वासपूर्वक कहा-"मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ । सुमने मुझे प्रेम के कारण पोटा था, पीटा या नी अच्छा, मैं तुम्हें इसका बदला दे दूंगी..." ___ उसने अपनी पापाज धीमी की और यामिली के चेहरे की घोर सोचे देखते हुए दुहराया: ""बाह, मैं तुम्हें कैसे पदला दूंगो ?" वासिनी को ये शब्द एक प्रतिज्ञा के समान लगे-एक सुन्दर प्रतिज्ञा के समान धौर इमसे यह धानन्दित हो उठा। फिर मुस्कराते हुए पदा