૨૩ ૨ भावारा प्रेमी - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - " मैं हरेक जानवर का विश्वास करती हूँ - लोमड़ी का भी और जङ्गली हे का भी । और जहाँ तक तुम्हारा सवाल है - मैं कुछ देर तक सोचूंगी । " लरकी ने धीरे से उत्तर दिया । " छा , तुम्हारे बिना मेरा जीवन कुत्तों से भी बदतर हो जायगा " उस समय शाश्का वास्तव में अनुभव सा करने लगा कि उसका जीवन एक दुख पूर्ण भयानक सङ्कट में से गुजर रहा है । उसके होठ कपि और आँखें भर माई । उसे वास्तव में वेदना पहुंची थी । " मच्छा, ठीक है । मैं तो एक बर्बाद व्यकि है . अपने पुखों में श्राकंठ निमग्न । लेकिन यह ठीक है जब तक कि मैं भाग्य को अपने अनुकूल बना तूं । लेकिन तुम भी इतनी भासानी से नहीं छूट सकेगी । मैं तुम्हें चैन नहीं तेने दूंगा । भले ही वह एक धनवान व्यापारी और अपने घोडों का मालिक हो परन्तु तुम मेरे विषय में सोचते- सोचते खाना-पीना भूल जानोगो । मेरे शन्दों को याद रखना " " भय समय भा गया है जब मैं गुढ़ियों से खेलना बन्द करदू , " , खड़की ने धीमे स्वर में परन्तु क्रोध पूर्ण मुद्रा में कहा । " मोह, अच्छा, तो तुम मुझे एक गुड़िया समझती हो , क्यों ? " " मैं तुम्हारे विषय में नहीं कह रही थी । " " देखो , इन लोगों को देखो, मेक्सीविच । यह सॉपी की जाति है । इनमें हृदय नहीं है । वह मेरे हृदय में अपने जहरीले दाँत गढ़ाती है और मैं पीटा से घयदाता हूं । परन्तु वह कहती है - श्रोह, तुम तो गढ़िया हो । " शारका कोधित हो उठा था । उसके हाय कॉप रहे थे और गुस्से से मॉग लाल हो रही थी । "ऐसे जानघरों के साथ कोई फैसे रह सकता है ? " उसने पूछा । " कितना सुन्दर अभिनय कर रहा है , " मैंने उसको ओर प्रगमा से देखकर मन में सोचा । उसके अभिनय ने लड़की को बहुत प्रभावित किया । अपने होठों को स्माल से पहले हुई उमने बड़ी नम्र श्रावास में पूदा जन्म
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