पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२१९

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नमक कादमदद छिडकना और फिर उसकी ऊची सी मीनार खड़ी कर देना था । वह एक खम्बा और हबसियों की तरह काला श्रादमी था और नीली कमीज तथा सफेद पाजामा पहन रहा था । वह एक नमक के ढेर पर खड़ा , फावड़े को हवा में हिलाता हुथा उन भादमियों पर चिल्ला रहा था जो तख्तों पर ठेलाको चढ़ा रहे थे । " इसे बाई सरफ खाली करो । बाई तरफ , ओ रीछ । तेरी चमड़ी को शैतान ले जाय मुक्कों के मारे दोनों आँखें सुजा दूंगा । अवे श्री विष्छू , तू किधर जा रहा है । " दुष्टतापूर्वक उसने अपनी कमीज के किनारे से अपने मुंह का पसीना पोछा, घुरघुराया और बिना रुके गालियाँ देता हुमा, अपनी पूरी ताकत लगा कर फावड़े से नमक को समतल करने में लग गया । मजदूर मशीन की तरह अपने ठेलों को ऊपर ले जाते और उसको श्राज्ञा मानकर मशीन की तरह साली कर देते । वह परायर हुक्म देता जा रहा था " बाई तरफ , दाहिनी तरफ ! " ऐसा कर वे अपनी पीठ सीधी करते और लड़खड़ाते कदमों से , काली कोचढ़ में भाधे हुवे हुए कापते तख्सों पर होकर, अपने ठेलों को ने, जो अव कम भावाज कर रहे थे , दूसरी खेप लेने के लिए नौट पाते । " इनमें जरा सी मिर्च झोंक दो न, हरामियो " फोरमैन उन पर चोखता । __ वे भयभीत से , चुपचाप इसी तरह काम करते चले जा रहे थे मगर कभी कभी उनके धूल और पसीने से सने उदास थके हुए चेहरों की मरोद में क्रोध और भसन्तोप के भाव झलक उठते थे । कभी कभी कोई ठेला तख्तों पर से फिसल कर कीचड़ में समा जाता । श्रागे वाले ठेले और भी आगे बढ़ पाते , पीछे पाने वाले ठेलों को रुक जाना पड़ता जव कि उन्हें पकड़े हुए चियदे पहने भावाराणों की सी मुद्रा वाले मजदूर अपने उन सायियों को उदासीनता के साय देखते रहते जो उम मनों भारी ठेले को उठाकर पुन तरतों पर रखने में ग्यस्त रहते ।