नमक का दलदल २२१ मुझे सफेद धब्बे से दिखाई दे रहे थे । यह श्रोचाकोच नामक कस्या था । मेरे पीछे वह झोपडी चमकीली पीली बालू के टीलों और समुद्र की नीली धमक में छिप गई थी । - झोपड़ी में , जहाँ मैंने रात विताई थी , मैने अनेक प्रकार की ऐसी पुरानी कहानियों और रायें सुनी थीं जिन्होंने मेरे उत्साह को ढीला कर दिया या । लहरों का संगीत मेरी मानसिक स्थिति के अनुकूल था और उसे और गहरा बना रहा था । कुछ ही देर बाद नमक का दलदल दिसाई पदने लगा । जमीन के तीन टुकड़े, प्रत्येक लगभग चार सौ वर्गगज लम्बा चौड़ा और नीची मेड़ों तथा हल्को पाईयों से एक दूसरे से पृथक , नमक खोदने की तीन विभिन्न स्थितियों को सूचना दे रहे थे । पहले टुकड़े में समुद्र का पानी भरा हुथा या नो भाप बन कर 84 जाने के बाद नमक की हरके भूरे एवं गुलाबी रंग की एक पर्त जमीन पर छोड़ देता था । दूसरे टुक में नमक को ठेरियो की शपल 4 में इकट्ठा किया जा रहा था । औरतें फावड़े हाथ में लिए, घुटनों तक चमकीली काली कीचड़ में पदी, यिना एक दूसरे से याते किए , चुपचाप काम कर रही थीं । उनके हरके भूरे रंग के शरीर उस गहरी , नमकोन, तेजायी फीचट में लापरवाही के साप इधर उधर फिर रहे थे । इस कोचर को यहाँ पाले रे कहते थे । तीसरे टुकड़े में नमक को हटाया जा रहा था । एक एक ठेले पर दो दो प्रादमी लगे हुए उन्हें धीरे धीरे चुपचाप खींचे लिए जा रहे थे । ठेलों के पहिए चूं पर फा शोर मचा रहे थे । और यह शोर ऐसा लगता था मानो मनुष्यों की नंगी पोटें शोकपूर्ण स्वर में भगवान से प्रार्थना कर रही हो । और भगवान ऐसी समय गर्मों की वर्षा कर रहा हो जिसने मुजसी हुई भूरी , अमीन को , जिस पर जगह जगह नमक के दलदल में उगने वाली घाब पीर चमकनी दुई नमक को पत्त पड़ी हो , विदीर्ण कर साजा हो । उन ठेलों की उस मनहर घरं च की भावाज के अपर सोरमैन की भारी थापान मुनाई पढ़ रही थी जिसमें यह उन मजदूरों को गालियाँ दे रहा था जो नमक के ठेले उसके पैरों के पास उलट रहे थे । उसका काम यालो से टस पर पानी
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