पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२२१

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नमक का दलदल २२४ पाने के लिए बढ़ा । उसके पास पहुंचने से पहले ही वह चोखा " ए, क्या चाहते हो ? काम चाहते हो ? " मैंने उसे बताया कि हाँ , काम चाहता हूं । " तुमने कभी ठेला खींचा है ? " मैंने बताया कि मैंने मिट्टी ढ " मिट्टी ? इससे क्या होता है । मिट्टी ढोना दुसरी बात है । यह नमक ढोया जाता है, मिट्टी नहीं । तुम तो जाकर शैतान के यहाँ रहो । ये राक्षसों जैसी हहियों वाले, इसे यहाँ मेरे पैरों के पास डालो । " राक्षसों जैसी हट्टियों वाला मजदूर , जो भीम जैमा भारी और र चौडा व्यक्ति था तथा जिसकी मूछे फहरा रही थी और नाक फुन्सियों से रही थी , जोर से घुरघुराया और अपना ठेला पलट लिया । नमक बाहर नि पदा । उस मजदूर ने गाली दी , फोरमैन ने भी जवाब में गाली दी , दोर एक दूसरे की तरफ आत्मीयता पूर्ण मुस्कराहट के साथ देखा और मेरी । मुहे । " अच्छा, सो तुम क्या चाहते हो ? " फोरमैन ने पूछा । " क्यों , क्या अपनी रोटियों के लिए नमक लेने के लिए श्राये हो , भालू ? " उस भीमकाय मजदूर ने फोरमैन की तरफ खेिं मारते हुए पूछ मैंने फोरमेन से प्रार्थना की कि मुझे काम पर ले ले और उसे विर दिलाया कि मैं जल्दी ही काम सीख लूंगा और दूसरों के घरावर काम लगूगा । " इस काम को सीखने से पहले हो तुम अपनी पीठ का मुर्ता लोगे । मगर मुझे क्या ? चलो, काम करो । मगर मैं पहले दिन तुम्हें प केपिक में ज्यादा नहीं दूगा । ए, इसे एक ठेला दे दो । " न मालूम कहाँ से एक अधनगा लपका निकल भाया । उसकी टागों पर घुटनों तक चियदे लिपटे हुए थे । " मेरे माथ घायो, " उसने मेरी तरफ सन्देह के साथ देखते हुए कह में टसके साय उस जगह गया जहाँ ठेलों का एक थम्बार सा