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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२२२

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नमक का एखदक २२५ हुमा या और अपने लिए एक हल्का सा ठेला छांटने में लग गया । लड़का अपनी टांगें खुजाता और मेरी तरफ देखता हुश्रा खड़ा रहा । ____ जब मैंने अपना ठेला छांट लिया तो वह घोला : " जरा देखो तो सही ने कौनसा छांटा है तुम्हें दिखाई नहीं देता कि इसके पहिए टेदे है ?" इतना कह कर वह दूर हट गया और जमीन पर लेट गया । मैने दूसरा ठेला छांटा और उन मजदूरों के साथ जा मिला जो नमक बेने के लिए जा रहे थे मगर मेरा मन एक अस्पष्ट सी वेचैनी से भरा हुया था जिसने मुझे अपने साथी मजदूरों से बात करने से रोक दिया । उन सबके चेहरों पर थकावट और चिडचिडेपन का भाव झलक रहा था । यद्यपि यह भाव निश्चित रूप से था । फिर भी अस्पष्ट था । वे लोग विल्कुल पस्त भार भयानक हो रहे थे । वे लोग सूरज पर फद्ध हो रहे थे क्योंकि वह उनकी चमडी को मुलसा रहा था , तख्तों पर इसलिए कि वे उनके ठेलों के भार से भुक जाते थे, उस काली कीचद से , जो गादी, नमकीन और नुकोले टुक्दों से भरी हुई थी , इसलिए कि वह उनके पैरों में पहले तो घाव बना देती थी और फिर उन पार्यों को काट काट कर नासूर के रूप में पदल देती थी । संक्षेप में कई तो वे वहाँ की प्रत्येक वस्तु पर मद हो रहे थे । यह भयानक झोघ उनकी उस दृष्टि में , जिससे वे एक दूसरे की तरफ देखते ये, तथा उन गालियों में लो रह रह कर उनके चटकते गलों में से निकल उठती थीं , स्पष्ट रूप से देखा जा सकना था । किसी ने मेरी तरफ निगाह टठाकर भी नहीं देसा । मगर जब हम लोग नमोन के उस टुकड़े में घुसे और सस्तों पर होकर नमक के पार हेरों को सरफ यदे और मैंने अचानक अपनी टांग में कही पोट अनुभव की पौर इस श्राशा से मुहा कि शायद कोई मुझ पर हमला करे । " अपने पर उठा , काहिल यहीं का । " मैंने जल्दी से अपने पैर उठा लिए फिर अपने ठेले को रद कर उसमें नमक भरने लगा । " प्रौर भरो, " उम उपनग निवासी मोम ने दुश्म दिया वो मेरे पास हो सदा हुषा था ।