पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२६ नमक का दनदन मैंने , जितना भर सकता था , उतना भर लिया । उसी समय पीछे वाले मजदर आगे वालों पर चीखे. " आगे बढ़ो " आगे वालों ने थूक से हाथ गीले किए और जोर से शोर मचाते हुए अपने ठेलों को उठाया । ऐसा करने में है मुककर दोहरे हो गए और अपनी गर्दनों को आगे निकाले हुए उन्होंने पूरा जोर लगाया , मानो ऐसा करने से उनका बोझा हल्का हो गया हो । उनके तरीके की नकल करते हुए मैंने भी , अपनी शक्ति भर मुक कर प्रागे की तरफ जोर लगाया । मैंने ठेला उठा लिया । पहिया जोर से चर मराया । मुझे लगा कि मेरी गले की हड्डी टूट जायेगी । जोर पड़ने से मेरे बार की मांसपेशिया फड़कने लगी । मैंने लड़खड़ाते हुए पहला कदम उठाया . फिर दूसरा.. मुझे दाहिनी तरफ , बाई तरफ और कमी सामने की तरफ धक्के लग रहे थे . कि अचानक पहिया तख्ते से नीचे उतर गया और मैं मुंह के बल कीचद में जा गिरा । ठेले ने उपदेश सा करते हुए मेरे सिर पर अपने है दिन की चोट मारी और फिर धीरेसे उलट गया । और उन फान फाड़ने वाली सीटियों , चीख पुकारा और अट्टहास की उन ध्वनियों ने , जो मेरे गिरते ही उठी थीं , मानो मुझे उम गर्म कोष में और भी गहरा दुबो दिया । और जव मैं उस भारी ठेले को उठाने के व्यर्थ प्रयत्न में , हाय पर पीट रहा था तो मैने अपने सीने में एक भयानक दर्द का अनुभव किया ।