नमक का दबदल " अाखिर यह तख्तों पर क्यों नहीं चल सका ? " उसने कहा और गुस्से से बड़बड़ाता हुश्रा अपना ठेला लिए आगे बढ़ गया । श्रागे वाले श्रादमी अपने रास्ते पर चलते रहे; पीछे वाले मेरे ठेले को
- उठाने के प्रयत्नों को उपहास एवं क्रोध भरी दृष्टि से देखते रहे । मेरे शरीर पर
से पसोना और कोचढ़ को फुहारें मो छूट रहीं थीं । किसी ने भी मेरी मदद नहीं की । नमक के ढेर पर से फोरमैन की थावान श्राई : " रुक क्यों गए, शैतानो ! कुत्तो ! सुअरो ! निगाह से प्रोमल होते ही हरामखोरी पर उतर आये । चलो, आगे बढ़ो, तुम पर खुदा का कहर टूटे ! " " रास्ता छोदो, " वह उऊन निवासी घीखा और अपने ठेने को धगनी से मेरे सिर को लगभग टकराते हुए आगे बढ़ गया । अकेले रह जाने पर मैंने किसी तरह अपने ठेले को बाहर निकाल लिया और क्योंकि अब यह सालो और चारों तरफ फीचद से सना हुआ या , में उसे लेकर वहाँ से इस इरादे से भागा कि बदल कर दसरा ले श्रा । __ "फिसज गए दोस्त ? कोई बात नहीं; हरेक के साथ पहले पहल ऐसा ही होता है । " मैंने चारों तरफ नजर डाली धौर देखा कि एक बीम माल का छोकरा एक नमक के देर के पास कीचड़ में एक तपने पर पालयो मारे हुए बैट है । यह अपने हाथ के अंगूठे को चूस रहा था । उसने मेरी सरफ इशारा किया और उसकी उन आँखों में , जो उंगलियों में होकर देख रही घों , दया और मुस्कान भरी दुई पी । " मैं परवाह नहीं करता । जल्दी ही मोब जाऊँगा । नुमदारे हाय को पया हमा ? " मैंने पला । "जरा सो गरोच लग गई है मगर इसमें गमक क्षग रहा है । अगर इसे मान लाय तो शायद काम छोर कर भाग जाना पड़े । इस हाय से किर नाम नहीं किया जा सकता । मगर वा फोरमैन गुम पर धोने उसमें पालेकी नुम काम पर लग नामो को प्रता होगा । " में पारम जा पाया । दूसरी रोप लाते समय कोई घटना नहीं घटी ।