पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२२७

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२२८ नमक का दलदक्ष फिर में तीसरी और चौथी तथा इसके बाद दो खेप और लाया । किसी ने मेरी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया और मुझे इस स्थिति से बहुत बदा सन्तोष मिला जिसके लिए कि साधारण तौर पर मुझे खेद होता । " खाने का समय होगया , " किसी ने आवाज लगाई । मुक्ति को एक गहरी साँस लेकर ममदूर लोग खाना खाने चले गए मगर उस समय भी उन्होंने कोई टत्साह अथवा आराम करने का मौका पाने पर किसी तरह की खुशी प्रकट नहीं की । वे हर काम अनिच्छापूर्वक और क्रोध एव विरक्ति की भावना को मानो दबाकर कर रहे थे । ऐसा लगता था मानो परिश्रम से चकनाचूर हड्डियों तथा गर्मी से थकी हुई मास पेशियों को यह विश्राम कोई भी श्रानन्द प्रदान करने में असमर्थ था । मेरी पीठ दुख रही थी । मेरी टांगों तथा कन्धों को भी यही हासत थी मगर मैंने इसे प्रकट नहीं होने दिया और जल्दी से शोरवे के वर्तन की तरफ बढ़ा । " वहीं ठहरो, " एक फटी नीली कुर्सी पहने हुए एक बुड्ढे मजदूर ने कहा । उसके चेहरे का रंग शराब पीने के कारण उसकी कुर्ती की ही तरह नीला हो गया था । और उसकी घनी तनी हुई भौहों के नीचे लाल , भयानक __ पौर मजाक सा उड़ाती हुई आँखें घूर रहीं थीं । " वहीं ठहरी । तुम्हारा क्या नाम है ? " मैंने उसे बता दिया । " हु । तुम्हारा बाप बेवकूफ था कि जिसने तुम्हारा ऐसा नाम रखा । मैक्सिम नाम वाले लोगों को पहले ही दिन शोरवे के यर्वन के पास जाने की इजाजत नहीं है । मेक्मिम लोग पहले दिन अपने ही खाने पर गुजर करते है , मुना तुमने ? अगर तुम्हारा नाम इवान या और कुछ होता तो यह दूसरो यात होती । मिसाल के तौर पर मुझे हो ले लो । मेरा नाम मटवी है, इसलिए मुने पाना मिल गया । मगर मेक्सिम को नहीं मिलेगा । वह सिर्फ मुझे खाते देख सकता है । वर्तन के पास से दूर हट जात्रो । " मैने उसकी तरफ पाश्चर्य के साय देखा फिर दूर हट कर जमीन पर ले गया । मैं हम तरह के व्यवहार से मांचक्का सा हो रहा था । इससे पहले