पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२३३

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नमक का दनदन २३२ - . . .. - . - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - से अग्याधिक न्याकुल होकर उन्हें अपमानित और परेशान करना चाह रहा था । "जानवरो ! " मैं घू से हिलाता और उन्हें उसी भहे तरीके से गालियाँ देवा हुमा जैसी कि वे मुझे दे रहे थे, उनकी तरफ बढ़ता हुआ चीखा । भीड़ में घातक सा छा गया और वे लोग बेचैनी के साथ पीछे हट गए, मगर वह भीमकाय उक्र न -निवासी और नोले चेहरे वाला मट्वी अपनी जगह खड़े रहे और चुपचाप धास्तीने चढ़ाने लगे । " श्रायो, श्राश्रो, " सक्रन निवासी ने ममपर बराबर अपनी निगाह जमाये प्रसन्न होकर कहा । " गेबीला, इसकी सबीयत ठीक कर देना , " मट्वी ने उसे उत्साहित करते हुए कहा । " तुमने मेरे साथ ऐसी हरकत क्यों की ? " मैंने चीख कर कहा । " मैंने सुम्हारा क्या बिगाड़ा था ? क्या मैं तुम लोगों की ही तरह इन्मान नहीं हूँ ? " मैंने और भी अनेक भद्दी, गन्दी बातें यकी और गुस्से से कॉपने लगा और साथ ही इस बात से चौकन्ना रहा कि मेरे साथ और कोई भद्दी हरकत न होने पावे । मगर इस बार जो निस्तेज फोके चेहरे मेरी तरफ घूमे उनमें थोड़ी सी सहानुभूति झलक रही थी और कुछ पर तो अपराध की काली छाया छा रही यो । यहाँ तक कि मट्वी और उन न -निवासी भी एकाघ कदम पीछे हट गए । मटवो अपनी कमीज को मरोड़ने लगा तया वह उकन-निवासी अपनी जेबों में हाय टान कर टटोलने लगा । "तुमने ऐमा क्यों किया ? किसलिए किया ? " मैंने जोर देते हुए कहा । वे लोग विल्कुल खामोश रहे । उक्र न -निवासी जमीन पर निगाह गढ़ाए एक सिगरेट को उलटता पलटसा रहा । मटवी वहाँ से सब से दूर हट गया । औरों ने उदास होकर अपने सिर खुजाए और अपने अपने ठेलों की तरफ मुह दिए । फोरमेन चोग्यता और धूसे हिलाता हुम्रा प्राया । यह सब इसनी तेजी से हुमा कि नमक इकट्ठा करने वाली ये औरतें जिन्होंने मेरी चीख