नमक का दनदन मा सुन कर काम छोड़ दिया था , उस समय हमारे पास पहुंची जव मजदूर अपने अपने ठेलों पर वापस पहुंच गए थे । में इस कटु भावना से उद्वलित होता हुश्रा वहाँ अकेला रह गया कि मेरे साथ अन्याय हुआ था और मैं उसका नहीं ले सका । इस भावना ने उस पीड़ा को और भी असह्य बना दिया । मैं अपने प्रश्न का उत्तर चाहता था ; मैं बदला लेना चाहता था । इस लिए मैंने चीखते हुए कहा : ___ "एक मिनट ठहरो, साथियो ! " चे लोग रुक गए और चुपचाप मेरी तरफ देखने लगे । " मुझे यह बतानो तुमने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्या किया । तुम्हारे भी तो श्रात्मा है ! " श्रव भी वे खामोश ये और यह खामोशी ही उनका जवाब थी । श्रव अधिक स्वस्थ और शान्त होकर मैंने उनसे बातें करना शुरू कर दिया । मैने यह कहते हुए शुरु किया कि मैं भी उन्हीं की तरह एक श्रादमो हूँ; कि उन्हीं की तरह मुझे भी पेट की भूख शान्त करनी पड़ती है इसलिए काम करना पड़ता है; कि मैं यहाँ उन्हीं की तरह काम करने आया | था क्योकि हम सब एक से भाग्य से बंधे हुए हैं कि मैं उन्हें नीची निगाह से नहीं देखता या अपने को उनसे ऊँचा नहीं समझता । ___ " हम सब बराबर है, " मैंने कहा," और हमें हर तरह से एक दूसरे को समझना और आपस में एक दूसरे को मदद करना चाहिए । " बे वहाँ बढ़े हुए गौर से मेरी याते सुन रहे थे हानांकि मुझसे भौखें नहीं मिला पा रहे थे । मैंने देखा कि मेरे शब्दों ने उन्हें प्रभावित किया है और इससे मुझे और भी उरमाह मिला । उन पर एक निगाह डालने पर ही मुझे इस यात का विश्वास हो गया । मैं एक विपिन और तीखे भानन्द की भावना मे भर उठा और नमक के एक देर पर गिर कर रोने बगा । कीन नहीं रोता ? जब मैंने सिर उठाया तोम मफेवा था । काम का समय समाप्त की चुका था । धौर मजदूर पाँच पाँच धीर ६ः सः की टोलियों में नमक के टेर के पास बैठे हुए , दयते सूरज की रोशनी से गुवायो बने नमक को पृष्टभूमि को पद ररे का गन्द घयों जैसे शरीरों में गन्दा बना रदथे । चारों तरफ
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