सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४२ सेमेगा कैसे पकड़ा गया । वरावर खुल रहा था और दूध पीने की हरकत कर रहा था । चारों तरफ लिपटे हुए कपड़े में से पानी की बूं दे उसके बिना दातों वाले मुंह में धीरे धीरे गिर रही थीं । आश्चर्य चकित सेमेगा ने अनुभव किया कि इस कपडे में से टपकने वाली वू दें बच्चे के मुंह में नहीं जानी चाहिये , इसलिये उसने बण्डल को नीचे की तरफ करके माह दिया । ऐसा लगा कि यह हरकत वञ्च का पसद नहीं आई , क्योकि वह विरोध सा करते हुए गला फाढ कर रोने लगा । "चाचा " सेमेगा ने कठोरतापर्वक कहा " चुप - चुप । विल्कुल खामोश हो जा वर्ना अभी पिटेगा । अाखिर में तेरे लिये इतना परेशान क्यों हो रहा हूँ , क्यों ? मानो कि मुझे तेरी बड़ी जरूरत है न ! और तू है कि रोये चला जा रहा है , बेवकूफ कहीं का " मगर सेमेगा के शब्दों का वच्च पर तनिक भी असर नहीं हुआ । वह बराबर धीरे धीरे, बंधी हुई लय के साथ चीखता रहा जिससे सेमेगा बहुत परेशान हो उठा । " अच्छा रहने दे भाई , यह अच्छी बात नहीं । मैं जानता हूँ कि तू भीग रहा है और तुझे ठण्ड लग रही है और यह कि तू नन्हा सा ह, मगर मैं तेरा क्या करूँ ? " वचा फिर भी चीखता रहा । __ " मैं तेरी कोई भी मदद नहीं कर सकता, " सेमेगा ने कपड़ों को वच्च के चारों तरफ कस कर लपटते और उसे पुन जमीन पर रखते हुए गम्भीर होकर कहा । _ "मैं कुछ भी नहीं कर सकता । तू खुद जानता है कि मैं तेरी कुछ भी । मदद नहीं कर सकता । मैं खुद भी तेरी ही तरह अनाय ह । इसलिये श्रव हम तो चल दिये । " श्रीर हाथ को फटकारते हुए सेमेगा चल दिया और वडवड़ाता रहा । " गर पुलिस को दी न होती ता सम्भव था कि मैं तेरे लिये कोई