पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२४५

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सेमेगा कैसे पकड़ा गया २४४ - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - तेरा क्या करना चाहिये ? मुझे बता न ? और वह तेरी मा - अच्छा, अघ चुप चाप सोजा । नहीं तो बाहर गिर पड़ेगा ? " मगर वच्चा बरावर हाथ पैर फेंकता रहा और सेमेगा ने महसूस किया वह कमीज के एक फटे हुए छेद में से सेमेगा की छाती पर अपना मुंह गोड रहा था । सेमेगा अचानक रास्ते पर मूर्ति की तरह खड़ा हो गया और जोर से बोला __ " अरे यह तो दूध हूँढ़ रहा है ! अपनो मा का दूध । हे भगवान । अपनी मां का दध " और किसी कारणवश सेमेगा सर से लेकर पैर तक कॉप उठा । उसका यह कॉपना शायद लज्जावश हो या भयवश परन्तु यह एक ऐसी भावना थी जो विचित्र , सशक्त , दुखद और हृदयस्पर्शी अवश्य थी । " यह मुझे अपनी मा समझ रहा है । क्या , नन्हें से प्राणी । ठीक है न सुझसे तू क्या चाहता है ? मैं तो एक सिपाही हूँ, दोस्त, और अगर तू जानना ही चाहे तो एक चोर भी है । " हवा एकान्त में सनसनाती रही । " श्रव तुझे सो जाना चाहिये । सो जा । श्राजा रीनिदिया श्राजा मोजा । मुझसे तुझे एक बूंद भी नही मिल सकेगी . भया । सो जा । मैं तुझे गाना सुनाऊँगा, हालाकि यह काम तो तेरी मा को करना चाहिये था । अच्छा , प्रन्छा धव रहने दे , प्राजा री निदिया श्राला । म धाय नहीं हू - सो जा " और अचानक बच्चे के ऊपर नीचे सिर झुकाये , हल्के लम्बे स्वरों मे , अपनी भरसक कामल श्रावाज में सेमेगा गा उठा " तू हरजाई और कुटिल है , नहीं रिसी के काम को । " गह गाना उसने लोरी के स्वर मे गाया । दूधिया उन्ध सेनेगा के चारों तरफ गहरी होती रही और सेमेगा बच्च मोपने कोट में दिपाये मडक पर चलता रहा । और जब कि बच्चा बराबर