पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२४९

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उड से ठिठुर कर न मरने वाले दो नन्हे बच्चों को कहानी बडे दिन से सम्बन्धित कहानियों में यह बात एक प्रथा सी बन गई है कि साल में एक बार अनेक छोटे बच्चे और बच्चियाँ बरफ में ठिठुर कर मर जाते हैं । किसी सुन्दर बड़े दिन की कहानी में , आम तौर पर , कोई गरीव नन्हा सा लड़का या गरीव नन्ही सी लड़की , किसी विशाल इमारत की खिड़की में से, बैठक में सजे हुए बड़े दिन के पेड़ की चकाचौंध कर देने वाली सजावट को मुग्ध दृष्टि से देखते खड़े रह जाते हैं औरफिर निराश होकर उस भयानक ठंड में ठिठुर कर मर जाते हैं । यद्यपि नन्हें से नायक नायकाओं को इस प्रकार मार देना यहा कर है फिर भी मैं लेखकों की सुन्दर भावनाश्री का श्रादर करता हूँ । मैं जानता हूँ कि वे इन गरीब नन्हें बच्चों को ठन्ट से इसलिए मरवा डालते हैं कि जिससे अमीर बच्चे यह जान सके कि दुनिया में गरीब बच्चे भी है । मगर जहाँ तक मेरा सम्वन्ध है, इवने सुन्दर एवं महान उद्देश्य के लिए भी मैं किसी नन्हें से गरीव लड़के या लडकी को इस तरह ठन्ड से ठिठुरा कर नहीं मार सका । मैं खुद कभी ठन्ड से ठिठुर कर नहीं मरा और न मैंने किसी गरीब लड़के या लड़की को ठन्ड से ठिठुर कर मरते देसा है, इसलिए मुझे भय है कि अगर में उन्ड से टिठुर कर मरते समय उठने वाली भावनाओं का चित्रण करूंगा सो सम्भव है कि मेरा मजाक उड़े । और साथ ही यह वात वदी असगत सी लगती है कि दूसरे को किसी के अस्ति च का ज्ञान कराने के लिए उसे मार दिया नाय ।