दो नन्हें बच्चों की कहानी - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - में स्वर मिलाते हुए अपनी प्रार्थना समाप्त की । ये नन्हे बच्चे मेरी कहानी के नायक और नायका थे । लड़के का नाम या मिश्का निश्क और लड़की का का का रिया बह महाशय नहीं रुके इसलिए वे बच्चे बारबार उनकी टाँगों के बीच में से निकल कर उनके सामने या खड़े होते । काका ने प्रात्यधिक आशान्वित होकर धीरे से कहा, " सिर्फ एक टुकड़ा, सिर्फ एक टुकडा,, और मिश्का ने भरसक उन महाशय का रास्ता रोकने का प्रयत्न किया । और जव उन महाशय को नाक में दम था गया तो उन्होंने अपने रु एदार फोट के बटन खोले , अपना बटुमा बाहर निकाला , उसे अपनी नाक के पास ले गए और उसमें से एक सिक्का निकालते हुए उसे खूब जोर से नाक डाल कर संघा । और सिक्के को अपनी तरफ बढ़े हुए एक मैले कुचैले नन्हें से हाय पर रख दिया । पलक झपकते ही चिथड़ों की वे दोनों गेंदें उन महाशय के रास्ते में से हट गई और एक फाटक पर जाकर खड़ी हो गई जहाँ दोनों एक दूसरे से . चिपकी हुई कुछ देर तक खड़ी हुई चुपचाप सड़क पर निगाह दौड़ाती रहीं । ___ "उस घुड्ढे शैनान ने हमें देख नहीं पाया , " एक द्वीपपूर्ण विजयी स्वर में उस नन्हें गरीब लड़के ने कहा । “ वह मोड़ पर तमाशा देखने चला गया है, " हकी ने बताया । उस बदमाश ने क्या दिया ? " "दम कोपेक " मिश्का लापरवाही से बोला । " तो श्रव कुल कितना हो गया ? " सत्तर शोर साठ कोपेक । " "इवना ? तो अब हम जल्दी हो घर चलेंगे, क्यों चलेंगे न ? बहुत "इसके लिए अभी यहुरा समय है, " मिश्का ने उसे अनुत्साहित करते हुए कहा । " ध्यान रखना कि ज्यादा चन्द्रकर काम मत करना । श्रगर उस यद माग ने देख लिया तो तुझे भीतर ले जाकर खूप मरम्मत करेगा । देखा वह
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