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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२५२

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दो नन्हें बच्चों की कहानी हैं एक बजरा पाया । चलो, चलें । " यह वजरा रुयेदार कोट पहने एक मोटी औरत थी जिसमे प्रकट होता है कि मिश्का बहुत शैतान लडका था , बहुत ही बदतमीज और घटों का बनादर करने वाला । " दयालु माता ." , " वह करुणा स्वर में चीखा । " कुमारी माता के नाम पर ", " काका ने स्वर में स्वर मिलाया । "शश ! इस बुड्ढो सुअरिया ने तीन कोपेक से ज्यादा नहीं दिए, " मिश्का ने गाली देते हुए कहा और दुबारा फाटक की तरफ दौड गया । बरफ अब भी सड़क पर तेजी से गिर रही थी और हवा और जोर से चलने लगी थी । तार के खम्भों में से सनसनाहट की भावान पा रही थी , स्लेज गाड़ियों के नीचे वरफ टूटने की ध्वनि उठ रही थी और कहीं दूर , सड़क के दूसरे छोर से एक औरत को गूंजती हुई हंसी की श्रावाज श्राई । __ " मैं सोचती हूँ कि चाची अनफिसा श्राज रात को फिर शराब पियेगी, .. अपने साथी से और सटते हुए कारका ने पूछा । "मेरा भी यही ख्याल है । उसे शराब पीने से कैसे रोका जा सकता है, वह तो पियेगी ही, " मिरका ने निश्चयात्मक स्वर में कहा । हवा ने एतों पर पड़ी हुई वरफ को उडाना और बदे दिन की खुशी में मोटी यजाना शुरू कर दिया । एक दरवाजे का पटका बुला । हमके याद फौच के दरयाजे के यन्द होने की प्राचाज पाई और परु भागे पायाज ने पुकाराः " चाकीदार ॥ " चलो घर चलें . " काका के कहा । "फिर यही पुराना राग अलापने लगी । " ऊये तुप मिरका ने कहा, " तु, घर क्यों जाना चाहती है । " " यहाँ गर्मी है, काका ने मंऐप में समझाया । गर्नी! " मिरका ने मजाक टदाने हुए कहा । और जब ये मय मित पर तुझे नाचने को मजर योगे राय नम केपा लगेगा ? या रे गले में गाय