पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२६४

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दो नन्हे बच्चों की कहानी १७ " मुझे थोटी सी चाय मिल जायेगी , महाशय "मिका ने काउन्टर को अपने हाथों से थपथपाते हुए कहा । " चाय ? जरूर मिलेगी । अपने श्राप ले लो । जाकर थोड़ा मा गरम पानी ले श्राश्री । ध्यान रखना कोई चीज हटने न पाये । अगर तोट दी ता तुम्हारी तबियत झक कर दूंगा ।" मगर मिम्का येटर को बुलाने दौड़ ग । । दो मिनट बाद, एक ठेला हाँकने वाले की मी मुद्रा में जिसने दिन में अन्धी कमाई की थी , सिगरेट बनाता हुया मिश्का अपनी लटकी को बगल में बैठा हुया था । काका उसकी तरफ प्रशंसात्मक दृष्टि से देख रही थी । उसके नेत्रों में यह देखकर आश्चर्य और भय का मा भाव पा रहा था कि मिका लोगों की भीद में भी कितनी श्रापानी से अपना काम बना थाया था । होटल के कान फाइने वाले शोरगुल में काका की जान सो निकली जा रही थी शोर हर पण उमे यह भय लग रहा था कि किसी भी सण उन दोनों को कान पफर कर बाहर निकाल दिया जा सकता है । मगर उसने किसी भी दशा में मिस्का पर अपने इन भावों को प्रक्ट नहीं होने दिया । इमलिए टपने अपने दुरगे बालों पर हाथ फेरा और पूर्ण रूप से यह दिखाने की कोशिश करने लगी कि इस सव का उस पर कोई प्रभाव नहीं पढ़ रहा । एमा करने में टसके गन्द गाल धारयार लाल हो उटते थे और अपनी परेशानी को छिपाने के लिए यह बारबार अपनी धार सिकाट रही थी । इसी बीच मिश्का गम्भीरता के माध उसे तरीके बता रहा था और ऐसा करने में वह सिग्नी नामक एक कुलीकर और गन्दावली की नकल करने की कोशिश कर रहा था जो उसकी दृष्टि में शराब के नो की दशा में भी अत्यन्त प्रभावशाली प्रतीत होता या सया शरी में तीन महीने की सजा काट गुका था । " तो मिमान के तौर पर यह ग्रोव ला कि नुम भीर मॉग की ! नं मे व मांगोगी ? इतना कहना ही दान कि , - " री ।" भोर मांगने का यानरीया नहीं । गुदं करना का