पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२६७

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दो नन्हें बच्चों की कहानी जिस व्यक्ति की टॉगी में घुस जात्रा और उसे डरा दो कि वह कहीं तुम्हारे ऊपर न गिर पड़े । " " मैं ऐसा ही करूँगी, " कात्का ने अधीन सी होकर स्वीकृति भरी । "ठीक " उसके साथी ने इसे पसन्द करते हुए सिर हिलाया । "इसी तरह करना चाहिये । और फिर मिमाल के लिये चाची अनफिसा को ले ला । चाची अनफिसा क्या है । सबसे पहले तो वह पियक्कड है । और साथ हो और मिश्का ने बिना किसी झिझक के बता दिया कि चाची श्रन फिसा और क्या है । कात्का ने अपनी चाची की विशेषताओं के प्रति अपनी पूरी सहमति जताते हुए सिर हिलाया । । " तू उसकी बात नहीं मानती , यह अच्छी बात नहीं है । मिसाल के तौर पर तुझे तो यह कहना चाहिये - " चाची में अच्छी लड़की बनूंगी, तुम जो क्छ कहोगी । उस मानूंगी " दूसरे शब्दों में उनकी जरा सी खशा मद कर लो और फिर जो मनचाहे वह करो । यह तरीका है । मिश्का खामोश हो गया और शानदार ढङ्ग से अपना पेट खुजाने लगा से कि सिग्नी व्याख्यान देने के वाद खुजाया करता था । श्रव जवकि कहने के लिये और कोई भी विषय नहीं रहा तो उसने धीरे से सिर हिलाया और बोला " अच्छा तो खाना शुरू करें । " शुरू करो, " काका ने हामी भरते हुए सिर हिलाया जो कुछ देर से गोग्न और रोटी का भूसी निगाहों से देख रही थी । और वे दोनों उम शीलन भरे धु धली लालटेनों से प्रकाशित होटल के मशाना खाने लगे । होटल में फूहड़ गीत और गन्दी गालियों को गज भर रही थी । दोनो मन लगा कर , चुन चुन कर , धीरे धीरे,सोनार गों की तरह ग्वाते रहे । श्री अगर काका तहजीव मूलकर, लालची की नम्ह इनना बढ़ा कौर मुह में भर लती जिससे उसके गाल फूलट ठतेधरी