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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/३४

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मालवा ___"इसमें कोई प्राश्चर्य की बात नहीं कि वह बुढा आदमी तुम्हारे प्रेम में पड़ गया था !" याकोव ने मालवा को कुहनी से ठेलते हुए मधारी से हंस कर कहा । न "कभी कभी एक पुता श्रादमी जवान भादमी से ज्यादा अच्छा होता है।" "अगर पाप अच्छा है तो येटा उससे भी और ज्यादा अच्छा होगा।" "यह बात है ? तुमने इस तरह शेखी बघारना कहीं से सीखा ?" "हमारे गाँव की लदकियों अक्सर कहा करती थीं कि में देखने में विल्कुल बुरा नहीं लगता।" "लड़कियों क्या जानती हैं ? मुझ से पहो।" "परन्तु क्या तुम लड़की नहीं हो " मालवा ने उसे घूरा, शैतानी से हंसी और फिर गम्भोर होकर पोजी। "एक बार मेरे एक बच्चा हुश्रा था।" "रही माल-उँह ?" खिलखिलाकर हंसते हुए याकोय योला। "येवकूफ मत बनो!" उसकी तरफ मुड़ते हुए मालवा ने टाटा। याकोव सहम गया । उसने होठ चाटे और चुप होगया । दोनों लगभग साधे घन्टे तक धूप में अपने कपड़े सुखाते हुए सामोश बैठे रहे। मछुए उन तम्यो, गन्दो मॉपरियों में जो उनके रहने का काम देती यी, नींद से जाग उठे । दूर मे ये सय एक से दिखाई देते थे-रखे, गन्दे और नंगे पैर ""."उनको भारी थावाजे किनारे पर गूंज रहो यो । कोई गाली पोपे के पेंटे में हयौदे मार रहा था और उसकी यह नोसन्नो प्रायान टोल को घावाज जैसी दग रही थी । दो चौरत घोग्रवी हुई लद रही यों। एफ कुचा मौकने लगा। जाग उठे" याफोच बोला, "में भार कमी हो गदर जाना चाहचा था...."परन्न हूँ यहो, तुम्हारे साथ पिलया परते ।" "मने सन से फा दिया था कि तुमने जुम्से मेवानी को दो