पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/३३

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३८ मालवा ___"चलो, पानी से बाहर निकलो, सुईस कहीं का!" उसने हमते हुए कहा और घुटनों पर बैठते हुए अपना एक हाथ याकोव की ओर बढ़ा दिया और दूसरे हाथ से नाव का रस्सा पकड़ लिया। याकोव ने उसका हाथ पकड़ कर जोर से कहाः "अब देखना मैं तुम्हें कैसे गोवे लगाता हूँ !" इवना कह कर, पानी में कन्धों तक खड़े होते हुए उसने मालवा को अपनी तरफ खींचा । लहरें उसके सिर के ऊपर दौड़ती हुई नाव से टकराई और मालवा के चेहरे पर छींटे मारे । मालवा ने त्यौरी चढ़ाई और फिर हंस पड़ी । अचानक वह चीखी और अपने शरीर से याकोव को झटका देकर पानी में गिराते हुए कूद पड़ी। ___ और वे दोनों फिर पानी में दो सुईसों की तरह खेलने लगे-एक दूसरे पर छींटे उछालते, चीखते और घुर्राते हुए। सूर्य उन्हें खेलते देखकर हसने लगा। मछली विभाग के दफ्तर की खिड़कियों के कांच भी सूरज की रोशनी पड़ने से हंसने लगे । पानी में उनके मजबूत हाथों की चोटें पड़ने से लहरें उठने लगी और खलवलाहट का शोर होने लगा। और समुदी चिड़ियाँ, इन दोनों श्रादमियों को पानी में लड़ते हुए देख, चक्कर बाँध कर चीखती हुई उनके सिरों के ऊपर मंडराने लगी जो जव तव उठती हुई लहरों में गायब हो जाते थे। अन्त में, समुद्री पानी पी जाने के कारण थके और हांपते हुए वे किनारे पर आ वालू पर बैठ गये । "फू" याकोव ने साँस छोड़ी और मुंह बनाते हुए थूका । “यह पानी बड़ा खारा है। कोई ताज्जुव नहीं यहाँ सब ऐसे ही हैं ! 'दुनियाँ में सघ तरह की खराव चीजें बहुतायत से मिलती हैं। ।। मिसाल के तौर पर जवान लड़के । हे भगवान ऐसे कितने यहाँ है" मालवा ने अपने बालों का पानी निचोड़ते हुए हंस कर कहा उसके बाल काले थे और हालाकि अधिक लम्बे नहीं थे परन्तु खव घने और घुघराने थे।