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मालवा ४३ "तुम एक चिथड़ों के पुलिन्दे के अलावा और क्या हो । पहने अपने कपड़ों के छेद सी लो और तब हम लोग इस बारे में बात करेंगे।" मालवा ने जवाब दिया। सर्योझका ने अपनी पतलून के छेदों को गौर से देसा, सिर हिलाया और कहाः "यह अच्छा हो कि तुम मुझे अपना एक घांघरा देदो।" "क्या !" मालवा चौंक कर बोली । "हाँ मेरा यही मवलय है ! तुम्हारे पास जरूर कोई पुराना पांघरा होगा जिसका तुम स्तेमाल नहीं करतीं।" "अपने आप एक पतलून खरीद लो," मालवा ने उसे सलाह दी। "नहीं, मैं उस पैसे से शराय पीना चाहता हूँ।" "अच्छा, तुम यही करो!" हाय में पाँच पाँच कोपेक के चार सिक्के लिये हुए याकोव ने हस कर कहा । "हाँ, क्यों नहीं ? एक पादरी ने मुझे बताया था कि मनुष्य को अपनी आत्मा को रक्षा करनी चाहिए न कि शरीर की और मेरो प्रामा पोदका माँगती है, पतलून नहीं । पैसे मुझे दो!......यय में जाकर शराप पीऊँगा । मैं तुम्हारे बाप से तुम्हारे बारे में उसी तरह कह दंगा।" "कह देना!" याकोव योला तथा हाय हिलाते हुए और मालवा को भोर प्रोख मारते हुए उसने बदतमीजी से उसके कन्धे को हिलाया। सोमका ने यह देख लिया । धूक कर उसने धमकाते हुए कहा । "पौर में उस पिटाई को नहीं भूलू गा जिसका मैंने तुमसे वायदा पर लिया है. जैसे ही मुझे थोड़ा सा पाली समय मिलेगा मैं तुम्हारे कान सुजा दूंगा!" "किसलिए ?" याकोव ने कुछ सतक होकर कहा। "मैं जानता हूँ किमलिए !.. .... .अच्छा, क्या नुम मुझ में जल्दी शादी कर रही हो?" उसने मालवा से यारा पूछा। "यह पतामो कि शादी हो जाने के बाद हम लोग या करणे.