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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/३९

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४४ हम किस तरह रहेंगे और तब मैं इसके बारे में सोचूगी", उसने गम्भीर होकर जवाब दिया। सर्योमका समुद्र की ओर घूरने लगा फिर अपनी आँखें सिकोड़ी और होठ चाटते हुए बोलाः "हम कुछ नहीं करेंगे। हमारा समय मजे से कटेगा।" "लेकिन पैसा कहाँ से आयेगा ?" "ह" हाथ को घृणा से हिलाते हुए वह बोला-"तुम मेरी बुड्ढी माँ की तरह वहस करती हो.. क्या ? और कहाँ से ? मुझे क्या मालूम ? .. मैं जाकर शराब पीऊँगा।" ___वह उठा और उन्हें छोड़ कर चला गया। मालवा विचित्र ढग से मुस्कराती हुई उसे जाते हुए देखती रही। याकोव ने उसके पीछे गुस्से की निगाह से देखा। ____ "वह मस्त साँढ है, है न ?" याकोव ने कहा जब सर्योझका इतनी दूर निकल गया कि सुन न सके अगर वह हमारे गाँव में रहता होता तो वे उसे जंजीर से बाँध देते.. और ऐसा सबक देते कि वह अपनी सब हरकतों को भूब जावा । परन्तु यहाँ सब लोग उससे डरते हैं।" माखया ने उसकी ओर देखा और दाँतों में बड़बड़ाई: "पिल्ला कहीं का ! तुम उसकी कोमत नहीं समझते " "समझने के लिए है हो क्या? उसकी कीमत पाँच कोपेक से ज्यादा नहीं है" ____ "तुम्हें सोचकर बात करनी चाहिए", मालवा वोली- "यह तो तुम्हारी कीमत है....लेकिन ....... यह सब जगह घूमा हुधा है, सारे देश में और वह किसी से भी नहीं डरता !" "क्या मैं किसी से डरता हूँ?" याकोव ने शेखी बघारते हुए पूला । मालवा ने उसे नबाव नहीं दिया परन्तु उदास होकर लहरों के खेल को देखने लगी जो दौड़ कर किनारे तक जाती और नाव को धक्के मारती ।