पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/४२

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मालया "खर, मान लो मैं मूर्स है" याकोव ने दुखित स्वर में कहा-"क्या इस तरह की बातों के लिए किसी को चालाक होना हो चाहिए ? थच्छी यात ईकहो, मैं मूर्ख हूँ ! परन्तु मुझे यही तो कहना है : क्या तुम चाहोगी .... " "नहीं, मैं नहीं चाहूंगी !" "क्या ?" "कुछ नहीं !" "यह बात है। बेवकूफ मत बनायो" श्राहिस्ते से मालवा के कन्ये पकड़ते हुए याकोच प्रेम से योला : "कोशिश करो और समझो · .. " "चले जाओ, याश्का !" उसके हाय हटाते हुए मालवा ने कठोरता से कहा-"चले जाओ।" वह उठ कर सड़ा हो गया और चारा घोर देगा। "अच्छी बात है. अगर यह बात है तो मुझे परवाह नहीं ! यहीं तुम्हारी जैसी बहुत हैं · · क्या तुम सोरती हो फि तुम दूसरों से अच्छी हो ?" "तुम एक कुत्ते के पिल्ले हो,” उमने निरपेए भार से कहा और घाघरे की धूल झाड़ती हुई खड़ी होगई । वे झोंपड़ी की पोर साथ-साथ घलने लगे। ये धीरे-धीरे चल रहे थे एयोंकि उनके पैर रेत में धंस जाते थे। याकोव ने उजता से मालया को अपनी इच्छाओं के सन्मुष समर्पण करने के लिए फुमलाने की बहुत कोशिश की परन्तु यह पामोगी से टम 7 पर हंसती रही पौर बुरी तरह से मजाक में उसकी मिसलों को टुकराती रही। वे मोपनियों के पास पहुँपने ही वाले थे कि याकोर अचानक रक गया, मालया के कन्धों को पका और दोती भोप पर बोला: "तुम मुझे मिर्प परगान कर रही हो ......" मुझे मिस पना