पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/४४

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मालवा 8 "खेर, मान लो में मूर्ख "याकोव ने दुखित स्वर में कहा-"क्या इस तरह की बातों के लिए किसी को चालाक होना ही चाहिए ? अच्छी यात ई-कहो, मैं मूर्ख है ! परन्तु मुझे यही तो कहना है: क्या तुम चाहोगी ....." "नहीं, मैं नहीं चाहूँगी!" "क्या ?" "कुछ नहीं !" "यह बात है। घेवकूफ मत बनायो" श्राहिस्ते से मालपा के कन्धे पकड़ते हुए याकोव प्रेम से बोला : "कोशिश करो और समझो ... " "चले जानो, यारका !" उसके हाय हटाते हुए मालवा ने कठोरता से कहा-"चले जायो।" वह उठ कर खड़ा हो गया और चारो घोर देखा। "अच्छी बात है • यगर यह बात है तो मुझे परवाह नहीं ! यहीं तुम्हारी जैसी बहुत हैं क्या तुम सोचती हो कि तुम दूसरों में अच्छी हो ?" "तुम एक कुत्ते के पिल्ले हो,” उसने निरपेठ भाव से कहा और घाघरे की धून काढती हुई खसी होगई । ये मोपदी की ओर साथ-साथ चलने लगे। ये धीरे-धीरे पल रहे थे क्योंकि उनके पैर रेस में फंस जाते थे। याकोष ने उजना से मालवा को अपनी इच्छात्रों के सम्मुख समर्पग्य करने के लिए फुसलाने की बहुत फोशिश की परन्तु यह पामोशी में उस पर ईमतो रही शौर उरी तरह से मजाक में उसको मिश्तों को टुकराती वे झोपदियों के पास पहुँरने ही वाले थे कि याकीर सयानक रक गया, मादा के पन्धों को परुदा और दाती मोघ का घोला : "तुम मुझे नि परेशान कर रही हो ....... मुझे रोजिन पना