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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/४५

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- रही हो ... • • 'क्यो, कर रही हो न ? क्यों कर रही हो' होश्यार रहो वर्ना मैं तुम्हे इसके लिए पछताने के लिए मजबूर कर दूंगा।" "मुझे अकेला छोड दो, मैं तुम से कहे देती हूँ।" मालवा ने अपने को उसकी पकड से छुढाते हुए कहा और चल दी। एक मोपढी के मोड़ पर सर्योमका दिखाई दिया । उन्हें देखकर वह उनकी ओर आया और अपने अस्त व्यस्त भयङ्कर सिर को हिलाते हुए होठों पर एक कर मुस्कान लाकर बोला . "घूमने गए थे, क्यों ? अच्छी बात है !" “जहन्नुम में जाओ तुम सब के सब " मालवा गुस्से से चीखी । __ याकोव सर्योमका के सामने रुक गया और सृष्टतापूर्वक उसकी तरफ देखने लगा । वे दोनों एक दूसरे से लगभग दस कदम दूर थे । सोझका ने भी वदले में घूर कर देखा । वे लगभग एक मिनट तक एक दूसरे पर झपटने को तैयार दो मेदो की तरह खडे रहे और फिर चुपचाप अलग अलग दिशाओं की ओर चल दिए। xxx xxx समुद्र शान्त था परन्तु सूर्यास्त हो जाने के कारण एक भयानक चमक से चमक उठा था । झोपड़ियों की तरफ से शोरोगुल की श्रावाजें आ रही थीं और उन अावाजों से ऊपर उठती हुई एक शराब के नशे में धुत वनी औरत की पागल की सी चीखने की आवाज में निम्नलिखित बेहूदे शब्द सुनाई दिए: " टा-प्रगरगा, मातागरगा, मेरी माता-निचका का शराव पिए और ठोकर खाए मैं हूँ, विगही, उलझी और मुरीदार-श्रोह।" और ये शब्द जुए की तरह घृणास्पद, उन झोपड़ियो में गूंजने लगे जिनमें शीरे और सूखी हुई मछलियों की दुर्गन्ध भर रही थी । ये शब्द लहरों के सङ्गीत के वीच अत्यन्त कर्कश लग रहे थे। दूर पर समुद्र संध्या के कोमल प्रकाश में शान्त होकर अपने अन्तर में xxx