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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५५

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मालवा - - - - - इस साधारण से प्रश्न ने सर्योमका को अवश्य श्राश्चर्य में डाल दिया होगा क्योंकि उसने आँखें फाड़कर वासिली की ओर देखा और खिलखिला कर हंसते हुए बोला : "मैं इसमें अपनी नाक क्यों घुसेड़ रहा हूँ-इस बात को तो केवल) शैतान ही जानता होगा। लेकिन वह कैसी औरत है । उसमें बड़ी कशिश है !.. .."मैं उसे पसन्द करता हूँ.....'शायद मुझे उसके लिए अफसोस है .." वासिली ने उसको ओर अविश्वासपूर्वक देखा परन्तु किसी ने उसके हृदय में कहा कि सर्योमका निष्कपट हो बात कर रहा है। । “अगर वह एक पवित्र अक्षत योनि कुमारी होती तो मैं समझ भी सकता कि तुम्हें उसके लिए अफसोस है। परन्तु इस हालत में... • मुझे यह अजीब सा लगता है !" उसने कहा । सर्योझका चुप रह गया और दूर समुद्र पर एक लम्बा चक्कर काट कर किनारे की ओर अपना मुंह घुमाती हुई नाव को देखने लगा । उसकी आखें पूरी खुनी हुई थी और उनमें स्पष्टता मलक रही थी । उसका चेहरा सीधा और दयालु दिखाई रहा था। वासिली ने जब उसे इस तरह देखा तो उसके हृदय में सर्योमका के प्रति कोमल भाव उत्पन्न हो पाये । "हाँ, जो तुम कह रहे हो सच है। वह एक अच्छी औरत है । ... सिर्फ चाल-चलन की जरा ढीली है ! और याश्का ? मैं उसे जहन्नुम रसीद कर दूगा • पिल्ला!" "मैं उसे पसन्द नहीं करता।" सर्योमका ने कहा । "और तुम कहते हो कि वह उसके पीछे पड़ा है," अपनी दाढ़ी थपथपाते हुए वासिलो दाँत भींच कर बोला। "मेरी वाव का यकीन करो, वह तुम्हारे और मालवा के बीच में श्रा जायगा," सर्योमका जोर देते हुए बोला । उगते हुए सूरज की किरण सितिज पर एक खुले हुए पखे की तरह