पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/५६

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मालवा


फैल रही थीं। लहरों की आवाज के ऊपर, उन्हें दूर समुद्र में आती हुई नाव पर से, एक पुकारने की आवाज सुनाई दी । “ए हो भो-नो!......इसे भीवर खींच लो!" 1 "उठो, लड़को ए ! जाल को देखो!" सर्योमका ने श्राज्ञा दी । आदमी उछल कर खड़े हो गए और शीघ्र ही उन पाँचों ने अपनी व्य टी के मुताबिक जाल के हिस्सों को पकड़ लिया । एक लम्बा पारफौलाद की तरह मजबूत और लचीला-पानी से किनारे की ओर फैल गया और वे मछुए उसे अपनी कमर में लपेट कर घुर्राते और गहरी साँस लेते हुए किनारे की ओर खींचने लगे। और दूसरी ओर वह नाव, बहरों के ऊपर फिसलती हुई जाल के दूसरे हिस्से से खिंच रही थी। प्रकाशमान और भन्य सूर्य समुद्र के ऊपर निकल पाया। "अगर याकोब तुम्हें मिले तो उससे कहना कि वह कल पाकर मुझ से मिल नाय," वासिली ने सोमका से कहा। "प्रच्छी बात है।" नाव किनारे पर था गई और मछुथों ने उस पर में नीचे फूद कर जाब के अपने अपने हिस्से को पकड़ लिया और खींचने लगे। मामों के दोनों मुंद धीरे धीरे एक दूसरे के पास श्रा गए और जाल में लगे हुए कार्क के उसराने वाले टुकड़े एक अर्द्ध गोलाकार दशा में पानी में दबने उतराने लगे। उम शाम को कुछ अंधेरा हो जाने पर जब मनुए अपनी मापही ने खाना खा रहे थे, मालवा यकी और उदास एक हटी तथा उलटी पड़ी हुई नाव पर बैठी समुद्र की ओर देख रही थी जो अब अन्धकार में लिपटा पड़ा था। दूर एक भाग की लपट चनकी । मालवा जानती थी कि यह यह याग है जिसे चामिली ने जलाया है। समुद्र के उस काद विस्तार में एक भटकती हुई एकाको प्रेतारमा की तरह वापर कमी जार से चमक उठती और भी बुझ जाती मानो दुपो हो। इस लाल धब्ये