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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/६७

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६८ मालवा " रहने दो | बहुत हो चुका | बन्द करो " याकोव ने मोपड़ी के खुले दरवाजे से बाहर निकलते हुए शान्त परन्तु भयंकर आवाज में कहा । ____ उसका बाप और भी जोर से गरजा और उसके पीछे भागा परन्तु । उसकी चोटें केवल बेटे के हाथों पर ही पड़ी । “ तुम पागल तो नहीं हो गए हो .. . पागल तो नहीं हो " याकोव ने छेड़ते हुए कहा - यह अनुभव कर कि वह अपने बाप से बहुत ज्यादा फुर्तीला है । " तू ठहर तो सही , .. तू जरा ठहर तो सही ... " परन्तु याकोव एक तरफ उछल कर समुद्र की ओर भागा । वासिली नीचा सिर किए और बाहें फैलाए उसके पीछे भागा परन्तु किपी चीज से टकराया और मुंह के बल जमीन पर जा गिरा । वह जल्दी से उठकर घुटनों के बल बैठ गया और हाथों से शरीर को सहलाने लगा । वह इस भाग दौड़ से थक गया था और इस से बेचैन हो रहा था कि बेटे को उसकी गलती के लिये दंड नहीं दे सका । उसे अपनी कमजोरी का अनुभव कर बहुत दुख हुश्रा । "भगवान तुझे गारत करे " वह घरघरावी आवाज में चीखा-- उस थोर अपनी गर्दन बढ़ा कर जिधर याकोव भागा था और अपने कांपते होठों से पागलों की तरह माग ढालने लगा । याकोव एक नाव से टिककर गौर से वाप को देखता जाता और अपना सिर सहलाना जाता था । उसकी कमीज की एक वाह पूरी तरह फट गई थी और केवल एक धागे से लटक रही थी । कालर भी फट गया था । उसकी पसीने से भीगी हुई छाती धूप में इस तरह चमक रही थी । मानो उस पर ग्रीप चुपड़ दी गई हो । अब उसके मन में बाप के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई । उसने उसे हमेशा अपने से ताकतवर समझा था । और अब उसे बालू पर बुरी तरह और दीन दशा में बैठे घुसादिखा कर धमकाते हुए देखकर वह गहरे सन्तोप से मुस्कराया , एक ऐसी मुस्कान से जिसके द्वारा ताकतवर कमजोर की तरह नफरत से देखता है ।