पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/६८

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मालवा " तेरा धुरा हो !....." तू हमेशा के लिए नर्क में पढ़े ! " वासिलो ने इतने जोर से उसे गालियाँ दी कि थाफीव उपेक्षा का भाव दिखाते हुए समुद्र की भोर देखने लगा --उन झोपटियां की पोर , मानो / टर रहा हो कि वहाँ कोई निर्बलता की इन चीजों को सुन न ले । परन्नु वहाँ - दूर- लहरों और सूरज के अलावा और कोई भी न था । उसने तब थूका और धोला : "चीखते रहो ! .... तुम किसे नुकसान पहुंचा रहे हो ? • सिर्फ अपने को .. .." और जब कि यह घटना हम लोगों के बीच घटी है । मैं तुम्हें चताऊंगा कि मैं क्या सोचता हूँ " " चुप रहो ! " मेरी नजरो से हट जायो । भाग जायो ! " वासिली गरजा । ___ " मैं गाँव वापिस नहीं जाऊँगा, " अपनी आँखों को याप के ऊपर जमा कर उसकी हरेक हरकत को देखते हुए पासिली ने कहा : " मैं यहाँ जादों सक ठहरूँगा । यहाँ रहना मेरे लिए अच्छा है । मैं येवरूफ नहीं हूँ ! मैं सब समझता है । यहाँ जिन्दगी श्रासान है .. .. घर पर जो तुम चाहो मेरे साय कर सकते हो मगर यहाँ देखो ! " _ यह कह कर उसने अपना धूसा उठाया और बाप को दिपाते हुए हंसा, जोर से नहीं, परन्तु इतनी जोर से कि उसे सुनकर वासिली फिर गुल्ने से पागल होकर उठ पदा हया । उसने एक पतवार उठाई और चीखता हुधा याकोर की ओर दौड़ा । " अपने बाप को अपने वार को घूमा दिलाता है । मैं तुझे मार सालू गा " गुस्से से पागल यना हुघा जब राक या नाब ना पहुंचा, बागेर दर भाग चुका था - अपनी फटी हुई धास्तीन को पीद फरफरातामा पासिली ने उसके पीदे पतबार फेंकी परन्तु १६ गादी पीकर फिर होते हुए उस पुढे ने ना ये महारे परे डोर, सपने बेटे की चोर देश एए पागल के समार नार यो लकदी को पाँच पाल ।