पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७४

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मालया सुस्ती अनुभव की ओर साथ ही वह कुछ खाने और मालवा को देखने के लिये व्याकुल हो रहा था । उसने वहां समुद्र पर सुस्ती से समय बिताते हुए कई वार मालवा के बारे में सोचा था और अब वह यह जानना चाहता था कि उसके बाप से उसकी मुलाकात हुई है या नहीं और अगर हुई है तो ने मालवा से क्या कहा है .. ... शायद उसने मालवा को पीटा हो । यह छो बुरी बात नहीं है यह उसकी अकड़ को जरा ढीला कर देगी ! अपने इस रूप में तो वह बढ़ी अक्खड़ और घमण्डिन है । झोपड़ियाँ पूर्ण शान्त और निर्जन थीं । झोंपड़ियों की खिड़कियों पूरी तरह खुली हुई थी और ये व काठ के बक्स भी गर्मी से होते हुए से लग रहे थे । एजेन्ट के दफ्तर में जो झोंपड़ियों से छिपा हुआ था एक बच्चा अपनी पूरी ताकत से चिल्ला रहा था । पीपों के एक ढेर के पीछे धीमी आवाजें सुनाई दी । याकोच सीना तान कर पीपों की तरफ बढ़ा । उसे लगा कि उसने मालवा की शावाज सुनी थी । वहाँ पहुँच कर और उनको देखकर वह पीछे • लोटा , त्यौरी रढ़ाई और रुक गया । पीपों के पीछे, उनकी छाया में , लाज वालों वाला सर्योझका अपने सिर के नीचे हाथ रखे, पीठ के बल लेटा हुआ था । उसके एक तरफ माजया बैठो हुई थी । " वह यहाँ क्या कर रहा है ? " अपने बाप के विषय में सोचते हुए याशय ने अपने पाप कहा । " क्या उसने यहाँ मालवा के और ज्यादा नजदीक रहने के लिये अपना वह श्राराम का काम छोड़ दिया है जिससे यह यासो३ को उमसे दूर रख सके ? ओह ! क्या हो अगर माँ समको इन हेनों को नुने ?..... मैं उसके पास जाऊँ या नहीं ? " "सदा! " टमने सोमका को कहते सुना " तो , यह शलविदा है , का ? मी बात है ! जाम्रो योर धरती को जोतो ! " पालोव ने खुशी से प्राय झपकाई । " हो , जाऊँगा ! " उसका चाप बोजा ।