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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७३

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मालवा - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - उसके बेटे ने उसका मजाक उड़ाया था , उसके दिल को तोड़ दिया था । इससे अच्छा तो यह होता कि अपने बाप के दिल को सताने के बजाय वह मर जाता ! और किसलिए । एक बदमाश औरत के लिए जो पाप की जिन्दगी बिता रही है उसके लिए यह पाप था , एक बुढा आदमी जिसने , अपने स्त्री और बेटे को छोड़ दिया था , भुला दिया था और इस औरत के साथ रहने लगा था । इसलिए भगवान् ने अपने दैवी कोप के द्वारा उसे उसके कर्त्तव्य की याद दिला दी और उसके बेटे से उसके दिल पर चोट पहुंचा कर ठीक और मुनासिब सजा दी । यही बात थी । हे भगवान् ! बालू पर उदास बैठे हुए वासिली.ने अपने ऊपर क्रॉस का निशान बनाया और आँखें झपका कर पलकों पर आए हुए आँसुओं को , जो उसे अन्धा बना रहे थे, गिरा दिया । सूरज समुद्र में डूब गया । डूबते हुए सूरज का अद्भुत प्रकाश धीरे धीरे मिट गया । किसी शान्त एव सुदूर प्रदेश से श्राते हुए हवा के गर्म मोंके ने उस किसान के ऊपर पखा किया जो आँसुओं से भीग रहा था । प्रायश्चित के इन विचारों में डूबा हुआ वह वहाँ तब तक बैठ रहा जब तक कि गिर कर सो न गया । अपने बाप से हुई लड़ाई के दो दिन बाद याकोव दूसरे कई मछुओं के साथ , एक स्टीम वोट से खींची जाने वाली बड़ी नाव से , उस जगह से तीस मील दूर समुद्र में एक विशेष प्रकार की समुद्री मछली पकड़ने गया । पाँच दिन वाद वह अकेला एक पाल वाली नाव में वहाँ लौट आया । उसे खाने पीने का सामान लाने के लिए वापिस भेजा गया था । वह दोपहर बाद श्राया जव मछुए खा पीकर आराम कर रहे थे । सख्त गर्मी पड़ रही थी , वपती हुई वालू पैरों को जला रही थी और मछली तौलने के काँटे और मछली की हड़ियाँ पैरों में चुभ रही थीं । याकोव सावधानी से झोपडी की योर चलने लगा । चलते हुए वह अपने बूटों को न पहनने के लिए अपने को कोसता जा रहा था । उसने नाव तक वापिस जाकर वूट लाने में बढ़ी