पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७८

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मालदा ७७ ह उससे हाथ मिलाए । वासिली अपने बेटे के चेहरे पर अस्थिरता के वि देखकर परेशान हो उठा शौर अब भी उसने याकोय की उपस्थिति में छ ऐसा अनुभव किया जो शर्म से मिलता जुलता था । यह भावना उसके न में अपनी झोपड़ी में याकोव के साथ हुई घटना और मालपा के चुम्बनों उत्पन्न कर दी थी। "और देवो "अपनी माँ को मत भूलना ।" अन्त में उसने कहा । "अच्छी बात है, ठीक है," याकोव सौजन्यतापूर्ण मुल्कराहट के यि बोला-"फिकर मत करो."मै ठीक काम ही करूंगा!" उसने अपना सिर हिलाया। "अच्छा इतना ही कहना है ! अनविदा ! ईश्वर तुम्हें सब कुछ " "मुझे प्यार से याद करना ..." श्रोह, सर्योझका ! मैंने हरी नाय के ले रेत में चाय का डिव्या गार दिया है।" "उसे चाय के डिब्बे की क्या जरूरत है ?" जल्दी से याकोब ने पूदा । वह मेरी जगह काम करेगा'....'चहा" वासिलो ने बताया। याकोव ने सोझका को देखा, मालवा की तरफ निगाह फेंकी और पिनी योपों में छाई हुई खुशी को चमक को दिपाने के लिए सिर नीचा र लिया । "यच्छा. अलविदा दोस्तोमैं पल दिया!" वासिलो ने सय को सिर मुकाया और पल दिया । मालमा भी सके साथ चली। ____ "मैं सुन्दं योशी दूर तक छोर पाऊँ," यह बोली । 3. योझका रेन पर गिर पड़ा और याकोप के पैर को जोर से पान ज्या जिपने मालवा के पीदे जाने लिए कदम उठाया था। " ! तुम फर्ना जारदे हो?" ___ "हरो ! मुझे लाने दो।" सपने पैर दाने की कोशिश HTT या पायव सपा । परन्तु मोनिका ने दरका दूसरा पैर भी पर लिया र धोला: