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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७९

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So मालवा


वह धीरे धीरे चलती हुई पीपों के पास आ गई जहाँ सर्योझका ने यह सवाल पूछते हुए उसका स्वागत किया । "अच्छा, तो तुम उसे छोड़ भाई ?" मालवा ने स्वीकृतिसूचक सिर हिलाया और उसकी वगल में बैठे गई । याकोव ने उसकी तरफ देखा और कोमलता पूर्वक मुस्कराया, अपने होठों को हिलाता हुआ मानी वह कुछ कह रहा हो जिसे केवल वही सुन पाया हो। "अब, जब तुम उसे विदा कर चुकीं तो तुम्हें उसके चले जाने से दुख है, क्यों ?" सर्योझका ने एक गीत के शब्दों को दुहराते हुए उससे फिर पूछा। "तुम वहाँ, वासिली की झोपड़ी में क्व जा रहे हो ?" मालवा ने समुद्र की ओर इशारा करते हुए जवाव देकर पूछा। "इसी शाम को" "मैं तुम्हारे साथ चलू'गी।" "तुम चलोगी । अब मैं यही चाहता हूँ । "और मैं भी चलूगा" याकोव जोर देते हुए वोला । "तुम्हें कौन बुला रहा है ?” सर्योझका ने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए पूछा। एक घन्टे की, प्रादमियों को काम पर वापिस बुलाती हुई आवाज गूंज उठी । बरावर वजने वाले घन्टे की आवाजें एक दूसरी का पीछा करती हुई लहरों की उस सुन्दर मरमराहट में डूबने लगीं । ___ "मालवा बुला रही है " याकोव मालवा की ओर चुनौती देवी हुई आँखों से देखता हुआ वोला । "मैं ?" उसने ताज्जुब से कहा, "मुझे तुम्हारी क्या जरूरत है ?" "अच्छा हो कि हम लोग बात साफ करलें, याश्का " सरजी ने अपने पैरों पर सड़े होते हुए कठोरता से कहा-"अगर तुमने इसे सताना शुरू किया तो मैं मारते मारते तुम्हारा मुरता बना दूंगा । और अगर तुमने इस पर उङ्गली भी उठाई "मैं तुम्हें मक्खी की तरह मसल कर