पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/८८

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विदूपक निकाले, कोट का कालर ऊपर चढ़ाया और हमेशा की तरह निश्चिन्त होकर धीरे- धीरे चौक पार करने के लिये कदम बढ़ाये । मुझे मालूम था कि वह सर्कस के पास ही एक होटल में रहता है । परन्तु इस समय वह अपने निवास स्थान से दूसरी तरफ जा रहा था । ___ उसके पीछे चलते हुए मुझे उसको सीटी की आवाज सुनाई दे रही थी । सड़क के पत्थरों के बीच बने हुए गड़ों में , जो पानी से भरे हुए थे, वत्तियों का प्रतिविम्ब हव रहा था । काले घोदे हमारे बरावर प्रागए । गाड़ी के पहियो के टायरों के नीचे पानी उबल रहा था । सराय की चिकियों से सगीता की अजस्त्र धारा प्रवाहित हो रही थी । श्रन्धकार में औरतें चोर रही थीं । मेले को कामुकता से परिपूर्ण रात्रि प्रारम्भ हो रही थी । फुटपाथों पर नवयुवतियाँ यतखों की तरह तैरती हुई चली जा रही थीं । ये अपने साथ के श्रादमियों से बात कर रही थी । वर्षा के यारण उनको प्रावात भारी और कर्कश हो उठी थी । उनमें से एक ने उस विदपक को बुलाया । उसकी शावाज पादरी के समान धीमी थी । उसने उसे अपने साथ पाने के लिये निगत्रित किया । यह एक काम पीछे हटा, अपनी कॉप में में बंत निकाला और उसे सलवार की तरह पकर कार चुपचाप उस औरत के चहरे की पोर नान दिया । श्रोग्न ने गालियाँ दी और उदल कर एक तरफ हट गई । वह मम्नी में धीमे धीमे पग रखता हुया एक मोट पर मुसा और एक सड़क पर चलने लगा जी मिनार के तार की तरह मिल्कुल नीधी थी । कहीं हम लोगों में बात यागे पुन यादमी देख रहे थे । इंटो के फुटपाथ पर पैरो के पिन्ट र चलने की प्राचाज प्रा ली थी और यगानक दिनी योग्त की दर्व भरी चोर गें उठी । तगमग बीच सन लगे , मन बी धने प्राग में देना र मल के तीन जोसीगार फुटपाथ पर जार मचाने गए एक औरत में माना मनोरञ्जन पर रोई चार यारी-बारी से उनका भालिंगन कर गया