पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्सान पैदा हुआ शाम को वह पीले रूमाल वाली औरत के साथ झोपड़ी के पोछे कुछ दूर जाती और पत्थरों के एक ढेर पर पालथी मार कर बैठ जाती । फिर अपनी ___ हथेली पर ठोढ़ी रख कर तथा एक तरफ को सिर मुका कर गुस्से से भरी हुई ऊँची आवाज में गाती । " गाँव के गिरजे की चहारदीवारी के पीछे, हरी झाड़ियों में , पीली वालू पर मैं अपने अत्यन्त स्वच्छ और शुभ्र दुशाले को फैला दूंगी और वहाँ उस समय तक प्रतीक्षा करूँगी जब तक कि मेरा प्रियतम पायेगा और जब वह श्रा जायगा मैं हृदय से उसका स्वागत करूंगी । " साधारणतया पीले रूमाल वाली औरत हमेशा चुपचाप बैठो अपने पेट की तरफ देखा करती परन्तु कभी कभी अचानक एक गहरी , मन्द मर्दानी आवाज में गीत की अन्तिम शोकपूर्ण कढ़ी गा उठती । _ " श्रोह मेरे प्रियतम, मेरे प्रिय प्रियतम , मेरे भाग्य में तुम्हें अब देखना नहीं वदा है " दक्षिण प्रदेश के काले, दम घोंटने वाले अन्धकार में , ये कराहती हुई । थावाजें मेरे हृदय में उत्तर की वर्फीलो निर्जनता, चिंघाड़ते हुए वर्फीले तूफान और भेड़ियों की भयङ्कर धुर्राहट की स्मृति जगा देती । कुछ समय बाद उस भेंडी औरत को बुखार आ गया और उसे स्ट्रेचर पर डाल कर शहर ले जाया गया । रास्ते में वह काँपती और कराहती गई । कराहने की वह श्रावाज ऐसी लगती मानो वह गिरजे की चहारदीवारी और वालू वाला गीत गा रही हो । पीले रूमाल वाले उस सिर ने झाड़ियों के नीचे दुबकी लगाई और गायव हो गया । मैंने अपना नास्ता समाप्त किया । चाय के डिब्बे में रसे हुए शहद को पत्तियों से टका, झोला वाधा और अपनी छड़ी को ठोस जमीन पर ठोकता लोगों के लिया ।