पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/९२

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इन्सान पैदा हुआ थाँखें नीलापन लिए हुए भूरी थीं जो भय से बाहर निकली पड़ रही थीं । मुझे उन झाड़ियों के ऊपर पीले रुमाल से ढका हुया उसका सिर दिग्वाई दिया जो पूरी तरह से सिले हुए सूरजमुखी के फूल की तरह हवा में इधर घर हिल रहा था । उसका श्रादमी सुखुम में अधिक फल खाने से मर गया था । मैं वहाँ इन लोगों के साथ एक ही झोपड़ी में रहता था । पुराने रूसी स्वभाव के अनुसार वे अपनी मुसीवतों को इतनी अधिक और इतने ऊँचे स्वर में शिकायत करते थे कि उनका विलाप पाँच मील की दूरी से सुना जा सकता था । ये लोग दुख से सताये हुए सुस्त श्रादमी थे । मुसीवत ने, इन्हें अपने ऊजड़ पौर ऊसर जगोन वाले वतन से , पतभाड़ में टूटे हुए सूखे पत्तों को तरह . उदा कर इधर फेंक दिया था जहाँ की अद्भुत और समुद्री जलवायु ने उनकी औरया में चकाचौध उत्पन्न कर दी थी और जहाँ के श्रयधिक कठोर परिश्रम ने उन्हे पूरी तरह से तोड दिया था । वे अपने चारों ओर फैली हुई चीजों को गौर से देखते और पाश्चर्य से अपनी उदास निष्प्रभ बाँखों को झपकाते हुये, होठों पर करुण मुस्कान विसेर एक दूसरे की ओर देखते और धीमी श्रावाज में कहतेः । " यो "ह " ह " कितनी सुन्दर जमीन है ! " "चीजें जैसे पृथ्वी फाट कर निकली पड़ती हैं । " " हाँ " नों . "ौ " परन्तु फिर भी . . " यह पथरीली अधिक है । " " यह इतनी अच्छी नहीं है, यह तुम्हें मानना ही पड़ेगा । " और फिर उन्हें अपने गाँच याद आएकोविली लोमोक, सुनोह गोन मोन्की प्रादि । जहाँ की मिट्टी के कण कण में उनके पूर्वजों की राज मिली हुई है । उन्हें उम मिट्टी को याद आई , यह उनकी प्यारी और परिचित यो । उन्होंने अपने पसीने मे इसे सींचा था । उनके साथ एक और औरत धी - लम्बी, सीधी, तर ते की तरह चीनी हातो , भारो जवना और उदास , कोयले सी काली भेदी योग ।