पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/९७

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• इन्सान पैदा हुमा की जेब को ढूंढने लगे और उसके दाँतों से काटे हुये खून से भरे हुए होठ हिले _ "मुझ में .. . .. ताकत . . नहीं .. है .. .. फीते का . .. टुकड़ा. .. री .. जेव ..में .. पाँध दो , नाल को . .... " उसने कहा । मैंने फीते का कढ़ा निकाल कर बच्चे का नाल बांध दिया । माँ और प्रसन्नता से मुस्कराने गी । वह मुस्कराहट इतनी निर्मल और प्रखर थी कि उससे मैं आश्चर्यचकित उठा । " तुम अपने को बिल्कुल सीधी रस्त्रो जब तक कि मैं उसे जाकर धो ताऊँ " मैंने कहा । "सावधानी से काम करना । अभी उसे पाहिस्ते से धोना --होश्यारी चे, " उसने उद्विग्न होकर कहा । परन्तु इस लाल यादमी के बच्चे को मावधानी से उठाने की जरूरत नहीं यो । वह अपनी मुट्टियाँ बाँध कर हवा में हिलाता और चीखता मानो द्वन्द युद्ध के लिये ललकार रहा होः " या - पा - धा - याह, या - या या प्राह । " " शापाश ! भावाश , मेरे भाई ! शान्त हो । अगर तुम चुप नहीं रहोगे तो पदोमो तुम्हारा सिर उखाद लेंगे, " मैंने उसे चेतावनी दी । जैसे ही पहली लहर ने श्राकर हम दोनों को भिगोया पद धुरी में चोखा परन्तु जब मेने धोरे धीरे उसकी छाती और पीठ को धोना शुरू किया तो यह धासें चलाने लगा और जब एक लहर के बाद दूसरी लहर आकर उसे धोती तो यह धीरता सौर हटने की कोशिश करता । और चीख अपनी पूरी माकत से चोय ! उन्हें यह दिसा कित पोरेल से घाया है, " मैने उमे उत्साहित करते हुए जोर से कहा । जब मैं उसे टसको मों के पास वापस लाया जो वह पुनः सपनी शो चन्द किए जमीन पर लेटीहुई पो और प्रसव के उपरान्त होने तारे दर्द से म्याफ होकर सपने होठ काट रहीं थीं । परन्म उसको उस व्यास