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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/९८

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૧૦૨ इन्सान पैदा हुआ - - - कराहट के बीच मुझे उसकी फुसफुसाहट सुनाई दी । "दे दो " उसे दे दो मुझे .. " " वह इन्सजार कर सकता है ! " " नहीं ! दे दो उसको मुझे " उसने कॉपते हाथों से अपने छलाऊज के बटन खोले । मैंने छावी उधारने में उसकी सहायता की जिसे कुदरत ने बीस बच्चों को दूध पिलाने के योग्य पुष्ट बनाया था और हाथ पैर फेंकने वाले उस छोटे से श्रोरेल निवासी को उसके गर्म शरीर पर रख दिया । वह तुरन्त समझ गया कि इसका क्या परिणाम होगा इसलिए उसने चीखना बन्द कर दिया । " पवित्र कुमारी , ईश्वर की माता ! " माँ गहरी सांस लेकर बुदबुदाई और अपने अस्तव्यस्त सिर को मेरे मोले पर इधर उधर हिलाने लगी । अचानक वह धीरे से चीखी , फिर चुप हो गई और तब उसने अपनी भावशून्य सुन्दर आँखें खोली- एक माँ की पवित्र अखि जिसने अभी एक बच्चे को जन्म दिया है । वे आँखें नीली थीं और नीले श्राकाश को ताक रही थी । उन आँखों में कृतज्ञता से भरी हुई प्रसन्न मुस्कराहट चमक रही थी । उसने अपने थके हुए हाय को मुश्किल से ऊपर उठाया तथा अपने बच्चे के ऊपर क्रॉस का निशान बनाया । " तुम्हारी रक्षा करे · पवित्र कुमारी , ईश्वर जननी... .... तुम्हारी रता करे .. " उसकी आँखों की चमक फिर धुझ गई । चेहरे पर पुन : पहले की सी कालिमा छा गई । वह बहुत देर तक शान्त पड़ी रही । बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही थी । परन्तु अचानक उसने दृढ़ श्रावाज में कहा : " लेडो मेरा येना सोलो " मैंने उसका थैला खोला । उसने निगाह गढ़ाकर मेरी तरफ देखा । उसके चेहरे पर एक फीकी मुस्कराहट दिखाई दी और मैंने उसके पिचके हए गाज्ञा और पसीने से भरी हुई भौहों पर लज्जा की एक अस्पष्ट झलक देखी । " यहाँ से जरा हट जायो, " उसने कहा ।